लेख
मित्रों, अर्थ की प्रधानता हमारे जीवन में वैसे है जैसे जीने के लिए ऑक्सीजन। जब हम विचार करते हैं ,कि,अर्थ ,धर्म, काम, मोक्ष का हमारे जीवन में क्या उपयोग है ?तब हम पाते हैं की अर्थ या अर्थात धन इस भौतिक युग में सुख का आधार है। जीवन का उद्देश्य सुख है। धन से सुख की प्राप्ति होती है। धन के द्वारा धर्म आचरण किया जा सकता है। धन के द्वारा काम का लाभ हो सकता है। किंतु धन से मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। धन केवल सुख, शांति ,सुविधा, ऐश्वर्य का साधन है ,एवं धार्मिक कार्यों में सहयोगी है। आजीविका हेतु धन संग्रह को उचित कहा गया है। गृहस्थ आश्रम में रहते हुए धर्म आचरण के अनुसार हमें धन संग्रह भविष्य हेतु अवश्य करना चाहिये।व्यवहार में यह देखा गया है ,कि ,माता-पिता अपने धन का व्यय अपने पुत्र पुत्रियों पर निस्वार्थ भाव से करते हैं। ऐसी परिस्थिति में धन के अभाव में माता-पिता की स्थिति वृद्धावस्था में अत्यंत दयनीय होती है। उनको पूछने वाला, उनकी सेवा करने वाला कोई नहीं होता। अतः माता पिता का कर्तव्य है, कि, वह अपने जीवन यापन एवं भविष्य हेतु पर्याप्त धन अवश्य संग्रह करें। चल अचल संपत्ति का संग्रह कुसमय में काम आता है, और वे बच्चों के ऊपर निर्भर नहीं होते हैं।संपत्ति संग्रहित करने से पुत्र पुत्रियों का ध्यान संपत्ति पर लगा रहता है। राम चरित मानस का प्रसंग है,”
स्वारथ लाग करैं सब प्रीति ”
इसी बहाने वे माता-पिता से अच्छा व्यवहार करते हैं। अतः वैश्विक परिपेक्ष्य में धन उपार्जन एवं धन संग्रह वृद्ध जनों को अवश्य करना चाहिये, अन्यथा भविष्य चिंतनीय है।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव,” प्रेम”