लेख
मित्रों, पति पत्नी का संबंध वैसे ही होता है जैसे दूध और पानी का संबंध होता है। गृहस्थ आश्रम को सभी आश्रमों में श्रेष्ठ आश्रम माना गया है ।क्योंकि इस आश्रम के माध्यम से ज्ञान योग ,भक्ति योग, और कर्म योग की उपासना आसानी से की जा सकती है। एवं शुद्ध एवं निश्चल भावों के द्वारा पति पत्नी के सहयोग से ईश्वर की प्राप्ति की जा सकती है ,फल प्राप्त किए जा सकते हैं। श्री रामचरितमानस में सती शिव विवाह के प्रसंग में वर्णन है जब माता सती को संदेह हुआ कि राम वास्तव में भगवान स्वरूप है या नहीं ,तब उन्होंने माता सीता का रूप धारण कर भगवान राम की परीक्षा ली ।तब गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं
“जलपय सरिस बिकाई, यही प्रीति कि रीत भली।
विलग होत रस जाई, कपट खटाई परत पुनी।”
मित्रों दांपत्य जीवन एक दूसरे के विश्वास पर टिका होता है जैसे दूध के साथ पानी , दूध के मोल बिक जाता है ,और कपट पड़ते ही अर्थात उस में खटाई पढ़ते ही दूध फट जाता है ।स्वाद रह जाता है ,पानी अलग हो जाता है ।यही पति-पत्नी का विवेक है। पति पत्नी मित्र धर्म का निर्वाह करते हुए दूध और पानी के समान एक होते हैं। यही नीर क्षीर विवेक है जो विश्वास पर आधारित है कि आपको निर्धारित करना है कि आपको क्या ग्रहण करना है ।बुजुर्गों द्वारा कहा गया है कि पति पत्नी बैलगाड़ी के दो पहिए हैं जो जब साथ साथ चलते हैं तब गृहस्थी सफलतापूर्वक चलती है जब एक पहिया अड़ जाता है या विपरीत दिशा में गति करता है तब गति रुक जाती है। कारण विश्वास है ।ये रिश्ताएक दूसरे के विश्वास पर आधारित है।और यही सहनशीलता स्नेह और समर्पण का मूल मंत्र है।
सादर
डॉ प्रवीण कुमार कुमार श्रीवास्तव”प्रेम”