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13 Nov 2019 · 1 min read

लिख ना पाई

बस वो बात नहीं लिखी,
जो लिखी जा सकती थी एक वृतांत की तरह,
पर ना जाने क्यों, वह लिख ना पाई,
लिख ना पाई वो अनकही शिकायतें,
जो हर बार या बार बार केवल तुम से ही थी,
लिख ना पाई वो शिकवे,
जो गहरे होते गए बढ़ते दायरे के साथ साथ,
लिख ना पाई वो ढेरों जज्बात,
जो उमड़ते-सिमटते रहे दौड़ते वक़्त के साथ,
लिख ना पाई वो अरमान,
जो कम होते होते मर कर दफन हो गए,
किसी जज्बाती मरग के साथ,
लिख ना पाई वो अहसास,
जो थे विरोध के अंगार,
जो ठन्डे होते रहे इक दमन चक्र के साथ,
बहुत आवेश था,जो उभर ना पाया वक़्त के साथ,
जो लिखना था,पर लिख ना पाई,
ना लिख पाई,वक़्त के साथ…..

Language: Hindi
3 Likes · 429 Views
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