लिखना ज़रूरी है…
वह्र:- हजज मुसम्मन सालिम
अरकान-मुफाईलातुनx4
बनाया है हमे क़ाबिल तो कुछ करना ज़रूरी है।
बदलना जो पड़े जग को हमें लिखना ज़रूरी है।
बदलना जो पड़े जग को…
फ़लक़ के चाँद तारों को जमीं के इन नजारों को।
चमन की गुलबहारों को ख़ुशी की इन फुआरों को।।
खुली आँखों से अब सपने हमें दिखना जरूरी है।।
बदलना जो पड़े जग को…
किसी मज़लूम की पीडा या बचपन की कोई क्रीड़ा।
दुराचारी के ज़ुल्मों को मिटाएंगे लिया बीड़ा।।
करें संघर्ष हम मिलकर न अब सहना जरूरी है
बदलना जो पड़े जग को…
सजाएं उनके सपनों को मिलेगी जीते अपनों को।
सजन सम्वेदनाओं को विरह की वेदनाओं को।।
दिलों में पल रहे अल्फ़ाज़ अब कहना ज़रूरी है।
बदलना जो पड़े जग को…
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’