लालची मतदाता
विषय- मत विक्रेताओं पर व्यंग्य
विधा – स्वच्छंद
⚛️⚛️⚛️⚛️⚛️ लालची मतदाता ✡️✡️✡️✡️✡️
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पैसे खर्च करेगा जो भी, बस उसकी ही बारी है।
मुर्गी पैसे औ मदिरा की, अब तो बस तैयारी है।।
नामचीन नेता या दल हो, उसे नहीं पहचाने हम।
गले से उतरे दारू जिसकी,उसका ही बस बमबम बम।।
काम करे या राष्ट्र बेच दे, हमें भला क्या करना है।
कीड़े है नाली के सारे, नाली में ही सड़ना है।।
मत के बदले हरा नोट अब, लेने की तैयारी है।
पैसे खर्च करेगा जो भी, बस उसकी ही बारी है।।
आया पर्व चुनावी देखो, नाचें खुशी मनाये हम।
मदिरा लेकर नेता जी के, सुर में ताल मिलायें हम।।
जन्म हुआ तब दीन हीन थे, दीन हीन क्यों मरना है।
वोट बेचकर आये जो भी, उससे जेबें भरना है।।
सुधरे कब थे जो सुधरेंगे, लगी हमें बीमारी है।
पैसे खर्च करेगा जो भी, बस उसकी ही बारी है।।
नेता अच्छा तो क्या मिलना, बुरा हुआ तो जाये क्या?
कर ली यारी गर जो त्रृण से, बोलो घोड़ा खाये क्या?
बिना कर्म फल चोखा चोखा, कर्म भला फिर करना क्या?
कौन भला औ बुरा कौन है, इस पचड़े में पड़ना क्या?
स्वर्णिम अवसर क्यों जाने दे, ऐसी क्या लाचारी है।
पैसे खर्च करेगा जो भी, बस उसकी ही बारी है।।
……..स्वरचित, स्वप्रमाणित
✍️पं.संजीव शुक्ल “सचिन”