लाचार भूख व बीमारी
प्यास भी बुझती नहीं,
भूख भी लगती नहीं,
गाँव जाने की ललक में,
पैरों के छाले दिखते नहीं ।
सोया नहीं कई रातों से,
फिर नींद क्यूँ आती नहीं,
शासक मैं बहुत मजबूर हूँ,
महसूस करता क्यूँ नहीं ।
गर मुझे मिलता जो खाने,
दर-दर मैं भटकता नहीं,
भूख से चाहे दम निकले,
बीमारी से मैं डरता नहीं ।
मजदूर हूँ बेशक़ जहाँ का,
आदत से मैं मजबूर नहीं,
“आघात” चलता जा अकेला,
तेरे साथ कोई हाक़िम नहीं ।