लव जेहाद
प्रेम कब है मानता ,
समाज का कोई बंधन।
तोड़कर हर रस्म रिवाज ,
बांधते परस्पर अटूट बंधन ।
खोए रहते मीठे सपनो में,
सजाने को सुन्दर घर आंगन ।
एक दूजे के लिए हर कष्ट ,
उठाते होने को कुर्बान ।
खोए रहते एक दूजे की बांहों में,
होकर अपने अंजाम से अंजान।
मगर हर प्रेम के भाग्य में मिलन नहीं होता,
बदकिस्मती ने लिख दी तबाही ,
और चित्कार कर उठा उनका मन ।
अलग कर उनको फिर वध कर दिया,
मिटा दिया उनका जीवन कांचन ।
इस प्रकार धर्म और जाति प्रथा के ठेकेदारों ने,
समाप्त कर दिया युगल प्रेमियों का प्रेम अनुबंधन ।