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14 Oct 2018 · 1 min read

लघुकथा

“नया सवेरा”
—————–
उन्मादित भोर की ढ़़लती शाम सी निढ़ाल स्वरा को बिस्तर पर पड़े देखकर गर्व ने उसके सिर को सहलाते हुए कहा-” खुद को सँभालो स्वरा, मन छोटा नहीं करते। तुम तो केंसर के भयावह परिणामों से भली-भाँति अवगत हो।अभी तो ये तुम्हारी यूटरस के भीतर ही जड़ें फैला रहा है,यदि बाहर फैल गया तो जानलेवा अवश्य साबित हो सकता है।ईश्वर ने हमें साथ-साथ रहने का अवसर दिया है फिर मन उदास क्यों?”
“यूटरस रिमूव होने के बाद मेरा स्त्रीत्व समाप्त हो जाएगा गर्व, मैं तुम्हें पहले की भाँति आत्मिक सुख नहीं दे पाऊँगी। जीवन में आए इस भूचाल से मैं बस एक जर्जर ठूँठ बनकर रह जाऊँगी।नहीं चाहिए ऐसा जीवन जो मुझसे मेरा स्त्रीत्व छीन ले।” कहते हुए स्वरा सिसकने लगी।
स्वयं पर नियंत्रण रखते हुए स्वरा की पेशानी चूमकर गर्व ने उसे अपनी बाहों में भरकर कहा-” ऐसा नहीं सोचते पगली, माना ऑपरेशन के बाद तुम्हारा व्यवहार सामान्य से भिन्न हो जाएगा, तुम्हारी संभोग की इच्छा शनै: – शनै: समाप्त होने लगेगी लेकिन जीवन का दूसरा नाम कामुकता तो नहीं। स्वरा मेरा जीवन है जो मेरे मन-मंदिर के उपवन में तुलसी बनकर महक रही है। अंतस के तम से बाहर निकलकर, दृढ़ विश्वास की ज्योति जलाए आगे कदम बढ़ाओ स्वरा।देखो, भोर की नूतन आभा आरती का थाल सजाए तुम्हारे स्वागतार्थ खड़ी है।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी(उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर

Language: Hindi
387 Views
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