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21 Jan 2018 · 1 min read

लघुकथा— सुख

लघुकथा— सुख
रमन ने चकित होते हुए पूछा,’ उस को पास बहुत सारा पैसा था. फिर समझ में नहीं आता है उस ने यह कदम क्यों उठाया ?’
‘ पैसा किसी सुख की गारण्टी नहीं होता है,’ मोहित ने दार्शनिक अंदाज में जवाब दिया.
‘ क्यों भाई ? क्या तुम नहीं चाहते हो कि तुम्हारे पास गाड़ी हो, बंगला हो, कार हो और नौकरचाकर हो ?’ रमन ने अपनी इच्छा व्यक्त की.
‘ चाहने से क्या होता है ?’ मोहित ने जवाब दिया, ‘ यह सुख हमारी किस्मत में नहीं है. हम तो दो रोटी रोज कमाते और खाते हैं. किराए की गाड़ी और किराए का अच्छा मकान ही हमारी सब से बड़ी खुशी है.’
‘ यही तो मैं कह रहा हूं. उसे अपने भरेपूरे घर में क्या कमी लगी थी जो उस ने ऐसा किया है,’ रमन बोला,’ हम जिस चीज के लिए तरस रहे हैं, वह सब उस के पास थी.’
‘ सही कहते हो भाई ! वह जब जो चाहती थी, कर सकती थी. एक हुक्म देती और सभी नौकर उस के सामने हाजिर हो जाते थे. ऐसा सुख उसे कहां मिलेगा ?’ मोहित ने पूछा.
‘ अरे ! जिस सुख की चाहत में वह अपने बच्चों और पति को छोड़ कर ड्राइवर के साथ भागी वह तो उसे मिलेगा ना ?’ रमन मुस्करा कर बोला तो मोहित ने जवाब में अपने दोनों कंधे उचका दिए.
——————————
22/07/2017
ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश्’
अध्यापक, पोस्ट आॅफिस के पास
रतनगढ़ जिला—नीमच मप्र
पिन— 458226
मोबाइल न 8827985775

Language: Hindi
533 Views
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