Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
27 Jul 2016 · 2 min read

लघुकथा : ” वो बच्ची और चूङियां “

“मम्मी मुझे चूङियां नहीं अच्छी लगती ऐसी ,आप वापस कर दो” रुचिका की बारह वर्षीय बेटी नव्या ने मुंह बनाकर कहा। रुचिका तेजी से दरवाजे तक गई पर चूङी वाला जा चुका था।
रुचिका वापस आकर बैंगल बाक्स में चूङियां जमाने लगी। दो दिन बाद हरियाली तीज पर पहनने के लिए हरी हरी सुंदर कांच की चूङियां खरीदीं थी रुचिका ने ।तभी नव्या के माप की चूङी देखकर उसने ये सोचकर ले लीं कि बङी हो रही है शायद उसे अच्छी लगें तो तीज के त्यौहार पर पहन लेगी।
पर नव्या ने देखकर मुंह बना दिया तो रुचिका दिमाग दौङाने लगी कि इतने माप की चूङियां किसे दूं।
वैसे बङी सुंदर थीं हरी हरी चूङियां।
“अरे हां ! बगल वाली मालती के घर एक नव्या जितनी बच्ची आती है काम करने मासूम सी , कितनी हसरत भरी नजरों से चूङी वाले की चूङियां देख रही थी वो आज।” रुचिका ने एकाएक आए विचार पर खुश होकर बुदबुदाया ” उसी को दे दुंगी , अभी जा चुकी होगी कल दुंगी , बहुत खुश हो जाएगी “।
मन हल्का हो गया रुचिका का कि चलो चूङियों का सही ठिकाना मिला।
अगले दिन दस बजे का इंतजार करती रुचिका को वो बच्ची अपने समय पर आती न दिखी तो वो खुद चूङियां लेकर पङोस वाली मालती के घर पहुंच गई।
पता चला उस बच्ची की आज तबियत ठीक नहीं तो उसकी मां आई है काम पर।
“चलो इसको ही दे दूं कल बच्ची पहन लेगी त्यौहार पर ” सोचकर रुचिका ने चूङियां उसकी मां को देते हुए कहा ” अपनी बेटी को दे देना चूङियां हैं, कल पहन लेगी वो ,मुस्करा कर कहा रुचिका ने कहा।
पर अगले ही पल काम वाली के आंखों में आंसू देख कर रुचिका को समझ नहीं आया कि हुआ क्या।
चूङियां वापस करते हुए कामवाली ने कहा ” मेमसाब आप रख लीजिए , ये उसके किसी काम की नहीं “उदास होकर कहा उसने।
“पर क्यों ?” रुचिका आश्चर्य में थी।
“क्योंकि वो बाल विधवा है”
हरी चूङियां रुचिका के हाथ से छूटकर फर्श पर बिखर गईं
और अनेक तीखे सवाल माहौल में ।।।।।।

अंकिता

Language: Hindi
890 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
एक गिलहरी
एक गिलहरी
अटल मुरादाबादी, ओज व व्यंग कवि
ग़ज़ल
ग़ज़ल
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
मत बांटो इंसान को
मत बांटो इंसान को
विमला महरिया मौज
"कारवाँ"
Dr. Kishan tandon kranti
रंग बिरंगी दुनिया में हम सभी जीते हैं।
रंग बिरंगी दुनिया में हम सभी जीते हैं।
Neeraj Agarwal
लैला अब नही थामती किसी वेरोजगार का हाथ
लैला अब नही थामती किसी वेरोजगार का हाथ
yuvraj gautam
The Magical Darkness
The Magical Darkness
Manisha Manjari
'स्वागत प्रिये..!'
'स्वागत प्रिये..!'
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
* सहारा चाहिए *
* सहारा चाहिए *
surenderpal vaidya
*नींद आँखों में  ख़ास आती नहीं*
*नींद आँखों में ख़ास आती नहीं*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
बरगद और बुजुर्ग
बरगद और बुजुर्ग
Dr. Pradeep Kumar Sharma
वो साँसों की गर्मियाँ,
वो साँसों की गर्मियाँ,
sushil sarna
🙏😊🙏
🙏😊🙏
Neelam Sharma
■ सियासी व्यंग्य-
■ सियासी व्यंग्य-
*Author प्रणय प्रभात*
राम के जैसा पावन हो, वो नाम एक भी नहीं सुना।
राम के जैसा पावन हो, वो नाम एक भी नहीं सुना।
सत्य कुमार प्रेमी
मै पैसा हूं मेरे रूप है अनेक
मै पैसा हूं मेरे रूप है अनेक
Ram Krishan Rastogi
पेडों को काटकर वनों को उजाड़कर
पेडों को काटकर वनों को उजाड़कर
ruby kumari
खुशियाँ
खुशियाँ
Dr Shelly Jaggi
मुझको अपनी शरण में ले लो हे मनमोहन हे गिरधारी
मुझको अपनी शरण में ले लो हे मनमोहन हे गिरधारी
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
सदा के लिए
सदा के लिए
Saraswati Bajpai
प्रेम की डोर सदैव नैतिकता की डोर से बंधती है और नैतिकता सत्क
प्रेम की डोर सदैव नैतिकता की डोर से बंधती है और नैतिकता सत्क
Sanjay ' शून्य'
आशा की एक किरण
आशा की एक किरण
Mamta Rani
स्वयं से करे प्यार
स्वयं से करे प्यार
Dr fauzia Naseem shad
बाल कविता: वर्षा ऋतु
बाल कविता: वर्षा ऋतु
Rajesh Kumar Arjun
कम्प्यूटर ज्ञान :- नयी तकनीक- पावर बी आई
कम्प्यूटर ज्ञान :- नयी तकनीक- पावर बी आई
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
*घर में बैठे रह गए , नेता गड़बड़ दास* (हास्य कुंडलिया
*घर में बैठे रह गए , नेता गड़बड़ दास* (हास्य कुंडलिया
Ravi Prakash
गंवारा ना होगा हमें।
गंवारा ना होगा हमें।
Taj Mohammad
अभी नहीं पूछो मुझसे यह बात तुम
अभी नहीं पूछो मुझसे यह बात तुम
gurudeenverma198
Can't relate......
Can't relate......
Sukoon
एक ऐसे कथावाचक जिनके पास पत्नी के अस्थि विसर्जन तक के लिए पै
एक ऐसे कथावाचक जिनके पास पत्नी के अस्थि विसर्जन तक के लिए पै
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
Loading...