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21 Jan 2017 · 2 min read

लघुकथा- चाहत

लघुकथा- चाहत

पिता ने शादी तय होते ही एक निवेदन किया था, जिसे लड़के ने मान लिया था.

“ बेटा ! एक ही विनती है,” बारात का स्वागत करते हुए पिता ने याद दिलाया तो दुल्हे ने कहा , “ आप निश्चिन्त रहिए. मुझे याद है.”

“ पिता हूँ बेटा. दिल नहीं मनाता है इसलिए याद दिला रहा हूँ,” फेरे आरम्भ होते ही पिता ने हाथ जोड़ कर वही बात दोहराई तो उन की पत्नी चुप न रह सकी ,” सुनो जी ! आप बारबार यही बात क्यों दोहरा रहे है. जब उन्हों ने कहा दिया है कि …..”

“ तू नहीं जानती भागवान. पिता का दिल क्या होता है ? यह हमारी लाडली बच्ची है. मैं नहीं चाहता हूँ कि उसे ससुराल में कोई अपमान सहन करना पड़े.” पिता भावुकता में कुछ और कहते की पत्नी बोल उठी, “ मैं उस की माँ हूँ. भला ! मैं क्यों नहीं जानूंगी. मगर , आप … ”

यह सुन कर पिता खींज उठे, “ तुझे क्या पता. कब, कहाँ, कैसी बातें करना चाहिए ? तुझे तो ठीक से बात करना भी नहीं आता.”

“ क्या !” पत्नी ने आसपास देखते हुए लोगों की निगाहे से बच कर अपने आंसू पौछ लिए.

“ मैंने दामादजी से कह दिया. मेरी बच्ची से भले ही खूब काम करवाना. मगर गलती हो तो दूसरे के सामने जलील मत करना. उस का दिल मत दुखाना. जब कि यह बात तुझे कहना चाहिए थी ,” पिता ने तैश में कहा तो पत्नी ने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी. वह शादी में कोई बखेड़ा खड़ा करना नहीं चाहती थी.

मगर जब बिदाई के समय पिता ने वही बात दोहराना चाही तो बेटी ने एक चिट्ठी निकाल कर पिता की ओर बढ़ा दी. जिस में लिखा था, “ पापा ! मम्मी भी किसी की बेटी है. काश ! आप भी यह समझ पाते .”

यह पढ़ कर पिता जमीन पर गिरतेगिरते बचे और माँ के बंधनमुक्त हाथ, आज पहली बार आशीर्वाद के लिए उठे थे और सजल आँखे आसमान की ओर निहार रही थी.
————————-
ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
पोस्ट ऑफिस के पास रतनगढ़
जिला- नीमच- ४५८२२६ (मप्र)
९४२४०७९६७५
०३/०६/२०१६

Language: Hindi
461 Views
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