23 रागनी किस्सा सेठ ताराचंद मनजीत
अब सेठानी दयावती चंद्रगुप्त से पुछती मनशां के यहां तेरा जीवन केसे बिता तो चंद्रगुप्त एक बात के द्वारा क्या कहता है।
रागनी नं:- 2
जुणसा हाल तेरा माता, वोहे हाल मेरा था,
दिन आवैगे ओले माता न्यू किसने बेरा था..!!टेक!!
थारे तै बिछड़ा जिस दिन, मेरी आत्मा रोई,
समझ नही आई या होणी, कुकर के होई,
मेरे पिता की पैड़ मनै, जाये पाछै टोई,
आंख नीर भरी देखण आल्ला ना था कोई,
मात पिता तै न्यारा रहया किस्मत फूटी लेरा था..!!१!!
तेरे पुत के लाड करे, पिता मनशां सेठ सेठानी नै,
दो भाई मिले करोड़ी मरोड़ी, जाणे थे कहानी नै,
कदे बैर भाव रहया नहीं इस देह बिराणी नै,
फेर भी रोक सका नही कदे, आंख्खे के पाणी नै,
राम नै हम न्यारे पाड़ै यो दुख गात नै देरा था..!!२!!
एक दिन एक साल , दिखाई दिया करता,
मेरी हिम्मात सारा कुंणबा लिया करता,
सुबह शाम तमनै याद करकै जिया करया,
आछी भुंडी कार करण तै डरा हिया करता,
बख्त की चोट लेई ओट, करडाई का फेरा था..!!३!!
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गुरु कपीन्द्र शर्मा, मिलगे थे विद्वान मैंने,
करकै पढ़ाई मंद्रशे मै, पा लिया ज्ञान मनै
ना करते देखे अभिमान मनै,
धर्म ज्योत उडै़ जलती पावै, ना झुठ कहण की बान मनै,
मनजीत नै ना सोची थी, पहासौर तै दूर बसेरा था..!!४!!
रचनाकार:- पं मनजीत पहासौरिया
फोन नं०:- 9467354911