रोज माँ को जो सिर झुकाते है
प्यार के दीप जो जलाते हैं
तीरगी को वही भगाते हैं
(1)
फिक्र हमको नहीं मकानों की
आशियां दिल में हम बनाते हैं
( 2 )
आज पाया वही बुलंदी को
रोज मां को जो सिर झुकाते हैं
( 3 )
साथ उनका सदा ही तुम देना
जो ज़माने —— में बेसहारे हैं
( 4 )
चांदनी रात —-है चले आओ
अर्श पे तारे —- झिलमिलाते है
( 5 )
अम्न जिनको है जान से प्यारी
फूल सहरा में वो खिलाते हैं
( 6 )
हो गये जो वतन — के दीवाने
वो किसी से न दिल लगाते हैं
( 7 )
ग़मजदा देख. कर जमाने को
दर्द हम अपना . भूल जाते हैं
( 8 )
रोज आते हैं —— वो खयालों में
पर हकीकत में —– भाग जाते हैं
( 9 )
फूल कांटे ——– कली सबा भौंरे
सारे मिल कर ——– बहार लाते हैं
( 10 )
छोड़ दे बात ——–अब तड़पने की
जिंदगी की ———- ग़ज़ल सुनाते हैं
( 11 )
जां हथेली ———- पे लेके चलते जो
बाजियां जीत ——— कर वो आते है
ढंग जीने —का जो नहीं जाने
फलसफा अब वही सिखाते है
( 13 )
जिसमें फल नफरतों के लगते हैं
उन दरख़्तों को — अब गिराने हैं
( 14 )
एक दिन शोला बनके उभरेगा
अब शरर दिल में जो सुलगते हैं
( 15 )
आतिशे – इश्क बढ़ चुकी ऐसी
मोम की तरह — -हम पिघलते हैं
( 16 )
कल तलक — दूर था मुहब्बत से
आपको देख —- दिल मचलते हैं
( 17 )
छुप गये हो —– कहां मेरे हमदम
अब चले आओ —- हम अकेले हैं
( 18 )
अश्क़ पीते—— हैं हम जुदाई में
तेरे दीदार ————-के ही भूखे हैं
( 19 )
हम तरसते हैं ———-एक कतरे को
जाम गैरों को ———- वो पिलाते
(20)
राधिका भूलतीं —- हैं सुधि अपनी
बांसुरी जब —- किसन बजाते हैं
( 21 )
रूठ कर दूर अब ——न जा “प्रीतम”
हम तुम्हारे —————बिना अधूरे हैं