रेल
आज अभी ये माना मैने भीड़ करीब से जाना मैंने,
लोग पे लोग चढे रहते हैं, देश की रेल इसे कहते है,
कभी समय से ये ना चलती, अपनी व्यथा ये किससे कहती,
सबके सब बाबू भर्ती हैं, इनका पेट यही भरती है,
पेट से बात समझ में आई, मोटे पेट हैं इनके भाई।
©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”