रेल यात्रा जालोर से जयपुर (भाग-1)
रेल का नाम सुनते ही मन प्रफुल्लित हो उठता है और आँखों के सामने, पहाड़, नदिया, झीलें, पुल और जंगलों के प्राकृतिक चित्र उभरने लगते हैं मन मे बड़े-बड़े शहरों जोधपुर या जयपुर जैसे शहरों की जगमगाहट हिलोरें लेती हैं। रेल यात्रा के विचारमात्र से ही सामान्य मनुष्य एक कल्पना की दुनिया मे चला जाता हैं,इन्ही कल्पना और विचारों को मन मस्तिष्क में समेटें हुए। मेरे भी कुछ काम के लिए जयपुर जाना था तो सोचा कि मै भी रेल से यात्रा करु।
यह यात्रा मेरे इतनी महत्वपूर्ण थी क्योंकि पहले यात्रा माताजी व पिताजी के साथ यात्रा करता था। किंतु अब मुझे स्वंय को यात्रा करनी पड़ती थीं इसलिए मेरे जयपुर में कुछ काम होने की वजह से मैं जालौर से जयपुर की और निकला। जब में जोधपुर रेलवे स्टेशन पर पहुँचा तो मेरी आँखें फ़टी ही फ़टी रह गई। टिकट की खिड़कियों पर इतनी लंबी पंक्तिया यूँ नजर आई जैसे कि स्वर्ग की सैर के लिए बुकिंग चल रही हो। पर मेरा टिकट मेरा छोटा भाई रमेश चौधरी ने पहले से ही ऑनलाइन बुकिंग कर दिया था। वहां जालोर की ट्रेन से उतरने के बाद एक ही मन विचार आ रहा था कि कही मेरी जयपुर वाली ट्रेन निकल न जाए।अचानक एक व्यक्ति ने मेरी पीठ थपथपाई और मुस्कराते हुए कहा”-आपका नाम भैया जी ” मैं तुरन्त बोल उठा भैया जी मेरा नाम शंकर आँजणा में बागोड़ा का निवासी हु अब कोई काम की वजह से जयपुर जा रहा हूँ”” उस व्यक्ति ने कहा कि वाह में भी भैया जी बाड़मेर जा रहा हु और पूछा आपका टिकट हो गया या नहीं “मैने कहा हा भैया जी मैने तो ऑनलाइन करवा दिया था आपका हुआ या नहीं तो उन्होंने कहा कि हां मेरा भी हो गया। फिर उन्होंने कहा कि शंकर इस लाइन में कितनी देर खड़े रहोंगे आपकी ट्रेन निकल जायेगी। आपको मालूम नहीं हो तो में छोड़ू ट्रेन तक मैने नही मैं चला जाहूँगा। अब मैं निश्चित भाव से पंक्ति से बाहर निकलते हुए आगे बढ़ने लगा तो अचानक एक गरीब परिवार पर मेरी नजर पड़ गई उनको पुलिस ने उनको स्टेशन से बाहर धकेलती कहा कि या नहीं वहां जाकर सो जाहो। मैं प्लेटफार्म पर जाने का विचार कर रहा ही था तब वहां एक मौसी आया और उन्होंने मेरे थैले की चेन को खराब कर दिया तो मुझे गुस्सा आ गया और मौसी से मैंने कहा कि मेरे बैग के हाथ क्यो लगाया आपने मैं और मौसी आपस मे झगड़ रहे तभी वहां एक पुलिस का आदमी आया और मुझे कहा कि क्या हुआ क्यो झगड रहे हो तो मैंने सारी पुलिस वाले को बताई तो पुलिस वाले ने मेरे को कहा कि अंदर जाकर शिकायत करो और उस मौसी को भी समझया की क्यो बिना फालतू लोगों के बैग के हाथ लगा रहे हो और मौसी को100 रुपये दिए तो मौसी ने उसमे से 20रुपये रख कर80रुपये मुझे वापस दिए। फिर मैरे ट्रेन का समय हो गया था तो मैं प्लेटफार्म 1 पर पहुँच कर देखा तो लगा कि पूरा विश्व ही सिमट कर यहा आ गया है कुछ लोग बेसुध इधर-उधर लेटे हुए थे कुछ कुर्सियां पर बैठे थे और कुछ अपने-अपने मोबाइलों में व्यस्त थे यह दृश्य मेने पहली जालोर देखा था प्लेटफार्म पर मास्क अनिवार्य, सरकार के गाइडलाइन का पालन, दूरी बनाए रखे और प्लेटफार्म की दीवारों स्वस्थ भारत के विज्ञापनों से आकर्षित लग रही थीं ओर आँखों के सामने रेल यात्रा के चित्र उभर रहे थे एक समय था जब जगह-जगह गंदगी का अम्बार लगा हुआ था यात्रियों द्वारा फेका गया कूड़ा इधर-उधर फेका हुआ था लेकिन अब तो जगह-जगह कूड़ेदान रखे हुए हैं पहले ट्रेन विलम्ब होने पर अव्यवस्था का माहौल होता था अब तो बैठे-बैठे मुफ्त इटरनेट का आनंद ले रहे हैं यह सब मोबाइल और इंटरनेट क्रान्ति ही परिणाम है। तब अचानक मेरी ट्रेन की घोषणा हुई कि जयपुर जाने वाली ट्रेन जोधपुर एक्प्रेस (गाड़ी नम्बर02386) प्लेटफार्म नम्बर1 पर आ रही हैं ट्रेन रुखने के बाद में D2,27 नंबर सीट पर जाकर बैठ गया। मेरे पास वाली ही26नंबर सीट पर एक अठाहर साल की लड़की बैठी थी।और मुझे अचानक याद आया कि जो मेने खाने के लिए फल लिए थे वो तो प्लेटफार्म ही रह गए। मैं सोच ही रहा था कि क्या करु तभी मेरी नजर एक परिवार पर पड़ी, जो किसी रिश्तेदार को विदा करने आये थे वे सलाह दे रहे थे कि किसी के दिया हुआ खाना नहीं खाना, बार-बार ट्रेन से नही उतरना और दरवाजे पर जाना आदि। छोटे बच्चे रो-रोकर कह रहे थे मामाजी हम भी आएंगे मत जाहो मामाजी। इस दृश्य को भावुक कर दिया और सिंगल हरा हुआ और ट्रेन चल पड़ी। काम से मैं जयपुर जा रहा था और जोधपुर प्लेटफार्म फर एक अनोखा ही दृश्य देखने को मिला। मैं ट्रेन के बाहरी दृश्यों की कल्पना कर रहा था और बोगी में हो रहे शोर की और ध्यान गया। मैं ध्यान दिया तो पता चला कि एक व्यक्ति किसी अन्य की सीट पर बैठ गया था जिसपर अन्य व्यक्ति का रुमाल रखा हुआ था रुमाल रखने वाला व्यक्ति कह रहा था कि यह सीट मेरी हैं, और बैठने वाले व्यक्ति कह रहा था कि आप रुमाल ताजमहल पर रख दोंगे तो ताजमहल आपका हो जायेगा क्या | उनकी बातें सुन कुछ यात्रियों की हँसी छूट रही थीं। तो कुछ यात्री गम्भीर मुद्रा में थे, जैसे तैसे करके वे दोनों व्यक्ति एक सीट पर बैठ गए। उनके चेहरों के भाव से मुझे लग रहा था कि यह दोनों जन्मों से शत्रु है। और आज रेलयात्रा ने उनको फिर मिला दिया। और जो मेरे पास वाली सीट पर जो लड़की बैठी थी उन्होंने तो मेरी सीट भी कवर कर दी थी तो मैने उनको की यह 27नम्बर सीट मेरी आप बैठ जाहो सोना नहीं। तो मेरे सामने बड़ी आंखे की तब भी मेने यही कहा कि यह आँखे दिखाने की जरूरत नहीं जो आपकी सीट है वहीं बैठो सोना है तो यात्रा नही करनी चाहिए। इतना कहने के बाद वो बैठ गई तब मुझे भी नींद आने लग गई और तभी टीटी आया और मुझे की टिकट बताहो मेने उनको टिकट बताया और उन्होंने कम्फर्म करते हुए आगे बढ़े। और यह सिलसिला युही चलता रहा तभी व्यवस्थित होते तो अगले स्टेशन से फिर लोग आ जाते। इस क्रम में कुछ लोग खाना-खाने लग गए, कुछ बाते करने में लग गए, कुछ मोबाइल देख रहे थे और कुछ लोग सोने की तैयारी कर रहे थे। एक महाशय ने तो गलियारी में कम्बल बिछा कर सो गया। अचानक मेरी नजर उन दो यात्रियों पड़ी जो ताजमहल की बात झगड़ रहे थे। वे दोनों एक साथ खाना खा रहे थे और राजनीतिक पर चर्चा कर रहे थे उनकी बातों से लग रहा था कि वे एक राजनीतिक पार्टी के सपोर्टर है और बोगी के खुले दरवाजे पूरी रात खट-खट की आवाज कर रहे थे कुछ लोग बारी बारी से पायदान पर यात्रा कर रहे थे। कुछ यात्री तो शौचालय के पास लगे मोबाइल चार्जर पॉइंट को ताक रहे थे। अपने मोबाइल को चार्ज करने के लिए प्रतीक्षा में थे। कुछ यात्री नींद में खर्राटे ले रहे थे तो मेरी नींद बार-बार खुल रही थी। सब परिवार की बातों को छोड़ मोबाइल में लगे हुए थे केवल अपनी तस्वीरों और मित्रो की चर्चा में लगे हुए थे। मेरे मन मे एक विचार आ रहे थे कि इंटरनेट ने पूरी दुनिया को मोबाइल में समेट कर रखा है। वहीं लोग जीवन के खट्टे-मिट्ठे अनुभवों को छोड़ सोशल मीडिया की काल्पनिक दुनिया को हकीकत मान रहे थे। हर कोई करीब होकर भी दूर होते जा रहे हैं ऐसे ही विचार मने आते रहे और न जाने कब मुझे गहरी नींद आ गई।
जब जब ट्रेन की स्टेशन पर रुकती तब तब यात्रियों के अलावा, चाय, समोसा,पानी व अन्य खाद्य प्रदार्थों को बेचने वाले भी ट्रेन में सवार हो जाते थे ।और फिर अगले स्टेशन पर उतर जाते थे,यह सिलसिला पूरी यात्रा के दौरान युही चलता रहा। गजब का अनुभव था उनके पास,जहाँ अपनी जगह पर ज्यो के त्यों फंसे हुए थे,वहीं वो भीड़ को चीरते हुए आसानी से आगे बढ़ते थे।दुःख मुझे इस बात का था कि इस पाउच संस्कृति के दौर में हजारों प्रतिबंध होते हुए भी गुटखा, खैनी बेचने वाले भी ट्रेन में व्यापार कर रहे थे। की इनकी पहुंच ऊपर तक है और कमिश्नर का व्यापार है, एक मेरे पास बैठे यात्री ने बताया कि पहले तो बीड़ी, सिगरेट आदि का अंदर सेवन करते थे। फिर जो मेरे पास बैठी लड़की ने बताया कि आजकल ऑनलाइन शिकायत कर सकते हैं यह सुविधा उपलब्ध हो गई हैं। रात्रि का समय था और मेरी कल्पनानुसार ट्रेन मकराणा में अंधेरी रात घने झाड़ियों में से गुजर रही थी और यह प्रकृति झलक झलक मनमोहक थी। पूरी रात अंधेरी मनमोहक दृश्यों को देखता रहा मैं और ट्रेन मकराणा से होते हुए नावा सीटी जंक्शन पहुँची।
मेरे मन यही विचार चलते रहे की मनुष्य के जीवन एक यात्रा ही तो है, जिसमे हर किसी को किसी लक्ष्य स्थल पहुँचाना होता हैं।
ट्रेन की खिड़की से बार देखा तो एक अद्भुत नजारा था चारों और अंधेरा ही अंधेरा था और बहुत ही शानदार नजारा था ठन्ड़ी ठन्ड़ी हवा की लहर आ रही थीं ।मनुष्य जीवन के भी कितने रूप है फिर भी बदलाव निरन्तर चलता रहता है।
हम सब के मन में एक ही विचार आ रहे थे कि हम सब एक ही परिवार के सदस्य हैं तो हम धर्म, जाति,क्षेत्र, भाषा, रंग और विचारों में क्यो बंटे है आखिरकार हम सभी को एक ही मंजिल पर जाना है यहाँ तो एकमत हो चले थे,हर कोई अपनी मंजिल पर जाता है।लेकिन अपनी एक छाप छोड़ जाता हैं,सभी को बिछड़ने का अहसास था, सभी एक दूसरे के मोबाइल नंबर देकर गन्तव्य स्थान पर विदाई दी रहे थे और कुछ पीछे छूट गए थे तो कुछ आगे की यात्रा में थे।
पूरी रात ट्रेन चलती हुई 04:45AM पर ट्रेन जयपुर पहुँची। और मेरा भी गंतव्य स्थान आ गया सभी ने नम आँखों से मुझे विदाई दी और मेने सभी को शुभ यात्रा कहा और अपनी मंजिल को चल पड़ा। फिर जयपुर प्लेटफार्म का वह दृश्य जो मेने पहले जोधपुर प्लेटफार्म पर देखा था।बस फर्क इतना ही था जगह और भाषा का।। जीवन का सम्पूर्ण सफर किसी रेलयात्रा से कम नहीं होता हैं,यह सत्य है क्योंकि मेने इस रेलयात्रा में जाना है। इस यात्रा की याद को मन मस्तिष्क में समेटें कुछ गीत की पंक्तियां लिखी है जो निम्न है-
“”न कोई हम भाषाभाषी,न कोई हम प्रान्त निवासी-सबसे पहले हम है भारतवासी””इस पंक्तियों को गाते हुए में अपनी मंज़िल को चल पड़ा।
मौलिक एवं स्वरचित
शंकर आँजणा नवापुरा धवेचा
बागोड़ा जालोर-343032
कक्षा स्नातक तृतीय वर्ष व BSTC दुतीय वर्ष
PMKKVY-डिप्लोमा
राजस्थान पुलिस मित्र कोतवाली थाना जालोर