रेल की बोगी (हास्य)
भारतीय रेल की बोगी
आपने भोगी की नहीं भोगी?
क्या कमाल एहसास है
मन कहता मुसीबत का फरमान है
चढने से लेकर उतरने तक
क्या चहल पहल व रेला है
जिधर देखो बस ठेलम ठेला है
लोग पे लोग ढहते है
आपसी भाईचारे का
मुक कथा ये कहते है
किसी का पैर दबा
वो चिल्लाता है
कोई सीट छेक कर
किसी अपने को बुलाता है
कोई कहता आप आप
कोई कहता बाप बाप
सीट पा गये तो वीर
वर्ना खड़े खड़े बन बैठे फकीर।
बोगी में सकुशल घुस जाना
क्या कठिन काम लगता है
इससे अच्छा कारगिल में
युद्ध का मैदान लगता है,
कोई खड़ा है कोई बैठा है
कोई लेटा तो कोई ऐठा है
यहाँ इंसान इंसान नहीं
कचरे का सामान लगता है
रेल की बोगी तो जैसे
भुसे का भरा गोदाम लगता है।
बीच सफर जो सौच लग जाये
आधी उम्र जाने तक कट जाये
एक्सपर्ट है तो उपर उपर जाईये
वर्ना अपनी ब्यथा पे
खड़े खड़े आंसू बहाईये
खूद पे हो भरोसा तो
कन्ट्रोल कर जाईये
वर्ना दिमाग दौड़ाईये
तनिक ना शर्माईये और
अंधेरे का लाभ उठाईये।
ठंडी का समय जैसे तैसे
किन्तु फिर भी कट जाता है
गर्मी में तो अपना भी पसीना
पड़ोसी के बगली से बाहर आता है
डीब्बा कम ये तो
हल्दी घाटी का मैदान लगता है
धक्का देता हर इंसान
इंसान नहीं शैतान लगता है।
सामान बेचने वाले भी कभी-कभी
अपनी उपस्थिति दिखा जाता है
सर पे टोकरी रखते व
इंसानियत का पाठ पढा जाता हैं।
……………✒✏
पं.सचिन शुक्ल
2/5/2017