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13 Nov 2019 · 1 min read

रेल की दो टिकटें

अथाह भीड़,
रिजर्वेशन
और टिकटें ।।
सदैव दो टिकटें
होती हैं
मेरी जेब में ।।

एक टिकट
परदेस से प्रिय तक
सफ़र कराती है,
तुमसे मिलाती है ।।
दूसरी
विरह की
आग सुलगाती है,
विछोह के दर्द की
टीस को जगाती है
दूर,
तुमसे दूर ले जाती है ।।

दोनों टिकटों का फर्क
तुम्हारी आँखों में देखता हूँ.
इसीलिये
दूसरी टिकट को मैं
तुमसे छिपाकर रखता हूँ ।।

दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”

Language: Hindi
6 Likes · 4 Comments · 494 Views
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