रूह – ए – इश्क
खबर सुनी थी कि वो आयेंगे तो उनके सदके,
खोल दिए हमने सारे दरवाज़े अपने दिल के ।
सब गुनाहों / वहमों को दूर हटाकर साफ कर ,
हसीन कालीन बिछा दिए बेशुमार रंगों के ।
झाड़कर गर्द फानूस- ए – इल्म ओ तालीम की ,
रोशन कर दिए चिराग अपनी महफ़िल के ।
जाम नहीं , पैमाना – ए- नजर में अश्क भरकर ,
खड़े हैं बड़ी बेताबी से इंतजार में उनके दर के ।
मुहोबत के धागे में पिरोकर अपनी हसरतों को ,
हमने बनाया था आशियां नजदीक साहिल के ।
मगर हाय ! मंज़ूर नहीं था रूह -ए – तकदीर को ,
रूह सदाएं देती रही और वो चल दिए मुंह फेर के।