रुप घनाक्षरी
रूप घनाक्षरी
हरी हरी धरती है,हरे भरे उपवन,
कल कल बहते है, अविरल नदी ताल.
प्रेमी मनुहार करे, मन में विहार करें,
साथ में पहनते हैं , जन जन वनमाल।
हरी हरी दूब पर, ही आराम करें नित्य,
प्राणायाम करें वृद्ध, जन हर साल साल।
भूमि है ये सुरभित, धन्य धरा धाम पर,
वसुधा के भाग्य में है,वसुधा का हर लाल।
डॉ० प्रवीण कुमार श्रीवास्तव.’प्रेम’