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19 May 2020 · 1 min read

रुप घनाक्षरी

रूप घनाक्षरी

हरी हरी धरती है,हरे भरे उपवन,
कल कल बहते है, अविरल नदी ताल.
प्रेमी मनुहार करे, मन में विहार करें,
साथ में पहनते हैं , जन जन वनमाल।
हरी हरी दूब पर, ही आराम करें नित्य,
प्राणायाम करें वृद्ध, जन हर साल साल।
भूमि है ये सुरभित, धन्य धरा धाम पर,
वसुधा के भाग्य में है,वसुधा का हर लाल।

डॉ० प्रवीण कुमार श्रीवास्तव.’प्रेम’

2 Likes · 2 Comments · 394 Views
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Books from डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
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