रिश्तों मे गाँठ
भूल कर सारे वाद-विवाद
मनमुटाव और अपवाद
मिलजुल कर आगे बढते हैं
परस्पर कर मीठा संवाद
बीत गई सो बात गई रुठी
हुई काली लम्बी रात गई
उलाहनों की बरसात गई
आओ करें दिल की बात
गाँठे पड़ जाती जब रिश्तों में
बातें-मुलाकातें होती किश्तों में
गिले-शिकवों की बलि चढ़ा
आओ करें फिर से मुलाकात
अहम- वहम को छोड़ें हम
बिखरे तिनकों को जोड़ें हम
कर-कदम आगे बढाते हुए
करते हैं हम नव शुरुआत
दुनिया दो दिन का मेला है
ना कुछ तेरा ना ही मेरा है
रंग-बिरंगें जग नवरंगों से
रंगलीन करतें हैं जज्बात
बार बार नहीं मिलता मोल
मानुष जन्म यह अनमोल
कपट-क्रोध,मोह-लोभ त्याग
ऊँचा करें कद-पद मानव जात
सुखविंद्र सिंह मनसीरत