रिश्तों की दुकान (मुशायरा)
उन्हीं राहों में वो दुकान सजाये बैठे है,
रिश्ते खरीद सकें आप
बश उतना ही मूल्य लगाये बैठे हैं।।
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भाड़े पर रहे आप या अपनी मकान में,
उन्हें तो बश शोहरत देसके
दौलत से काम है।।
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साहब; रिश्ते सवारने की,
बातें बड़ी -बड़ी करते हो,
करते हो गुमराह उन्हें और,
जेबें खुद की भरते हो।
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आप बहिष्कार करो हम स्वीकार करते है,
मौका अच्छा है,
इन्हीं रिश्तों को बेच मालदार बनते हैं ।।
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चले थे खरीदने कुछ सामान
पर बेच आये ईमान
ईमान बिकी अफसोस नहीं,
अफसोस तो बश इतना है
खरीदार नीकला रिश्तेदार।।
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रिश्ते को संसार कहता है
कोई अपना संसार चले
इसलिए रिश्तों का व्यपार करता है।।
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©®संजीव शुक्ल “सचिन”
प.चम्पारण
बिहार