रिन्द सारे ही साक़ी उठा ले गयी
रिन्द सारे ही साक़ी उठा ले गयी
साथ आंखों में वो मैक़दा ले गयी
कश्तियों को बहा बद् दुआ ले गयी
ज़िन्दगी को डरा कर क़ज़ा ले गयी
रंग फीके सभी फूल हैं ग़मज़दा
ख़ुश्बुयें बाग़ से सब हवा ले गयी
ढांककर जिस्म रखना पड़ा था उसे
मुफ़लिसी छीनकर वो रिदा ले गयी
आबोदाने की उठ्ठी जो उनको हुड़क
वो हुड़क सब परिन्दे उड़ा ले गयी
देख हैरान उसकी मैं कारीगरी
वो तो आंखों से काजल चुरा ले गयी
शक़ हुआ ही नहीं इस क़दर थी वफ़ा
ज़ीस्त बनकर वो सब-कुछ मेरा ले गयी
एक अन्धे ने किस्मत से मांगी दुआ
रौशनी दी तो किस्मत सदा ले गयी
टूटना ही मुक़द्दर में था ज़िद मेरी
पत्थरों के नगर आइना ले गयी
पास ‘आनन्द’ उसके बचा अब है क्या
अक़्ल को तो उड़ाकर अना ले गयी
– डॉ आनन्द किशोर