रिझाता है दिलों को
छंद-सिन्धु
विधा-गीतिका
मापनी -१२२२ १२२२ १२२२ (वाचिक)
पहला, आठवां तथा पंद्रहवां वर्ण लघु।
रिझाता है दिलों को बांसुरी वाला।
कहै नटवर उसे , कोई, उसे ग्वाला।।
वशी, वो प्रेम -बंधन का पुजारी है।
सभी के प्रेम का भूखा यशो -लाला।।
कभी कपडे चुराकर वो छुपाता है,
बड़ा नटखट निराला है लगे आला।
कभी मटकी भरी फोड़े कभी तोड़े ,
सताता है बहुत ही नंद का लाला।।
सभी ढूढें उसे खोजें नहीं पाते ,
करे नित वास गोकुल में लगा ताला।
भजे मन से करे चिंतन उसे प्यारा –
बसा सबके दिलों में ब्रज-धरा वाला।।