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16 Apr 2020 · 1 min read

रास्ता मंजिल के जैसा लग रहा है

बड़ा खामोश है गाफिल के जैसा लग रहा है
अमां मझधार भी साहिल के जैसा लग रहा है

हकीकत सामने बैठी है पर खामोश हैं लब
यहाँ हर आदमी बुजदिल के जैसा लग रहा है

गले मिलता था भाई बोलकर जो शख्स कल तक
वही हमदर्द अब सँगदिल के जैसा लग रहा है

फिदायीनों सा हमले कर रहा है जो मुसलसल
तुम्हें वो शख्स क्यों जाहिल के जैसा लग रहा है

मुहाफ़िज़ कह रहे हैं लोग उसको कौम का पर
मुझे वो कौम के कातिल के जैसा लग रहा है

ये माना के यहाँ पत्थर बहुत बिखरे हैं संजय
मगर ये रास्ता मंजिल के जैसा लग रहा है

1 Like · 250 Views
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