राम…
राम…
क्या अब भी तुम्हें
पत्थरों में ही बसे रहना है ?
क्या तुम्हें भी रहीम के औरतों को भोगना है ?
क्या नोच- चोथ कर औरतों को
गिद्ध तुम्हें भी इस काल में बनना है ?
अगर नही तो…
किस लिए तुम्हें फिर चुप्पी ही धरना है ?
फिर तुम्हें क्यूँ, किस लिए, किस के लिए
बलात्कारियों का ही राम अब होना है ?
अगर नही तो…अब के आओ,
तुम रहीम के राम कहाओ,
कबिरा के वही राम हो जाओ
खुद से ये कलंक जरा मिटाओ,
फिर से सब के राम कहाओ
रजिया- राधा सब की मान के लिए,
बेबस-मजबूरों के जान के लिए
इन दुष्टों को राह पाताल की अब तुम दिखलाओ…
आओ राम… बहुत बचाया लाज औरों की,
अब अपनी ही तुम लाज बचा कर दिखलाओ
तुमको भजने वालों से
बलात्कारी हत्यारों से अब अपनी तुम आन बचाओ
…सिद्धार्थ