रामराज्य
रामराज्य (1)
जब भी कोई बड़ी घटना होती है
बयानों का अटूट दौर
जाँच का सिलसिला
कमेटियों का गठन बड़ी गति से होता है
ये अलग बात है कि
अक्सर इनका परिणाम थोड़े दिन में ही
पानी के बुलबुले की तरह बैठ जाता है।
शिकंजे में आया अपराधी
कानूनी झोलझाल, नेताओं की कृपा से
जेल में ससुराल सा आनंद उठाता है या
जल्दी ही जमानत पर बाहर आकर
अपने झटका खा रहे
पुराने साम्राज्य को फिर फैलाता है।
चुनावी दौर में किसी पार्टी से
टिकट खरीद लाता है
अथवा निर्दलीय ही चुनाव लड़ जाता है।
अपनी दबंगई की बदौलत
कुछ भी करके जीत भी जाता है।
बहुत बार जेल में रहकर भी
चुनाव जीते देखे जाते हैं,
ऐसे ही ये माननीय बनकर
रामराज्य ही तो लाते हैं।
रामराज्य(2)
अपराधी जब माननीय बन जाता है,
कानून पसंद व्यक्ति
उससे और भी घबराता है।
कानून का रखवाला तब
घबड़ाता कम शर्माता ज्यादा है।
ऐसे में समय की पुकार है
कानून को सिरफिरे जवानों की
बहुत ही दरकार है।
उन्हें भी छूट देकर देखिये
अपराधी कानून तले पड़ा होगा,
कानून को आँख दिखाने वाला
मौत की माला लिए अड़ा होगा।
अन्यथा
जवानों का काम कुछ कड़ा होगा,
खुली सड़क पर एंकाउंटर भी
कुछ बड़ा होगा।
कोई बड़ा सवाल नहीं होगा
अपराधियों के हमदर्द मौन होंगे
शासन/प्रशासन को सूकून होगा
जनता मस्त अपराधी पस्त होगा।
बस कुछ कड़े फैसले लेने होंगें
आकाओं को पहले समेटने होंगे।
यदि ऐसा हो जाये तो
रामराज्य आ जायेगा,
फिर कोई कानून का रखवाला
अपराधियों की गोली खाकर
मौत के मुंह में नहीं जायेगा।
उसका परिवार भी जीवनभर
आंसू बहाने से बच जायेगा,
फिर रामराज्य को आने से
देखते हैं कौन रोक पायेगा।।
✒सुधीर श्रीवास्तव
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