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30 Jun 2020 · 7 min read

रामभक्त शिव (108 दोहा छन्द)

[पिताश्री रामभक्त शिव (जीवनी) भी पढ़ें, साहित्यपीडिया पर उपलब्ध है।]

// शुभ आरम्भ रामभक्त शिव दोहा छन्द //

रामभक्त शिव जी बड़े, जपते आठों याम
जन्मे वह शिवरात्रि को, पाया यूँ शिव नाम //1.//

वर्ष रहा ‘अड़तीस’ वह, शिवरात्रि महापर्व
पूरे काण्डी गाँव में, ‘शिव’ आये तो गर्व //2.//

देह जाय तक थाम ले, राम नाम की डोर
फैले तीनों लोक तक, इस डोरी के छोर //3. //

भक्तों में हैं कवि अमर, स्वामी तुलसीदास
‘रामचरित मानस’ रचा, राम भक्त ने ख़ास //4. //

राम-कृष्ण के काज पर, रीझे सकल जहान
दोनों हरि के नाम हैं, दोनों रूप महान //5. //

छूट गई मन की लगन, कहाँ मिलेंगे राम
लोभ-मोह में डूब कर, बना रहे बस दाम //6. //

सोते-जागे सब जगह, याद रहा ये नाम
खुद को जाऊँ भूल मैं, भूलूँ कैसे राम //7//

परिजनों संग कीजिये, चर्चा प्रभु श्रीराम
प्रेम बढ़ेगा आपसी, बनेंगे सभी काम //8.//

जग में सब है स्वार्थवश, सिवाय प्रभु का नाम
यही है मनोकामना, जिव्हा पर हो राम //9.//

राम चले वनवास को, दशरथ ने दी जान
पछताई तब कैकयी, चूर हुआ अभिमान //10. //

राजा दशरथ के यहाँ, हुए राम अवतार
कौशल्या माँ धन्य है, किया जगत उद्धार //11. //

मुख में जिनके राम है, हैं श्रेष्ठ वही लोग
पाप कटें, निशदिन जपें, दूर रहें सब रोग //12.//

अन्धकार मिटने लगा, घट में उपजा ज्ञान
राम रसायन पास तो, पास सभी विज्ञान //13.//

सियाराम वो नाव है, कर दे जो उद्धार
भवसागर में इस तरह, लग जाये तू पार //14.//

जिव्हा में यदि राम है, और श्रद्धा अपार
ले जायेगा पार भी, मुखरूपी यह द्वार //15.//

जीवन के हर युद्ध में, संग खड़े हैं राम
दुःख से नहीं हताश जो, पाए वो सुख धाम //16.//

राम नाम है कल्पतरु, मन के मिले पदार्थ
आप ही मनोकामना, पूर्ण करें सिद्धार्थ //17.//

तुलसी समान पूज्य है, सेवक तुलसीदास
परम भक्त ‘शिव’ आपका, रखो मुझे भी पास //18.//

जो भक्त महादेव का, खाय धतूरा-भाँग
मैं तो सेवक राम का, रामचरित की माँग //19.//

नशामुक्त जीवन जिया, किया ना धूम्रपान
पूरा जीवन राम धुन, किया यही गुणगान //20.//

छल जाये अधिकांश ही, है विष सुन्दर वेश
स्वर्ण मृग से हरी सिया, सुन्दर रूप कलेश //21.//

ज्ञान गया सब वेद का, देख सिया का रूप
रावण मूरख बन गया, विष है नार स्वरूप //22.//

मन से अपने त्याग दो, काम क्रोध मद लोभ
होगी असीम शान्ति तब, मिट जायेगा क्षोभ //23.//

ज्ञानी मूर्ख समान है, जीता ना यदि काम
हो मनवा स्थिर-शान्त भी, अगर जपोगे राम //24.//

अनुभव बूढ़ी आँख का, धर्म-कर्म के काम
जपते रहिये रात दिन, राम-राम अविराम //25.//

दुःख-सुःख में जो स्थिर रहे, समझे एक समान
महावीर कविराय वह, मानव है विद्वान //26.//

धीरज धारण कीजिये, सर्वोत्तम यह बात
राम-नाम की ओढ़नी, ओढ़े रहिये तात //27.//

जीवन के हर युद्ध को, जीतते धैर्यवान
संकट में ही होत है, योद्धा की पहचान //28.//

राजपाठ तज वन गए, धन्य-धन्य श्रीराम
त्यागी जीवन आपका, कालजयी यूँ नाम //29.//

राजभवन या वनगमन, देते यह सन्देश
सर्वोत्तम हर हाल में, धर्म-कर्म आदेश //30.//

टूटे धनु को देख कर, क्रोध में परशुराम
ऐ मूढ़ जनक सच बता, किसका है यह काम //31.//

धनुवा तोड़ा कौन ये, फरसा देखे बाट
उसकी इक ही वार में, खड़ी करूँगा खाट //32.//

शूरवीर की वीरता, दिखलाये रणभूमि
कायर डींगें हाँकते, काग़ज़ी म्यान चूमि //33.//

मन को गहरे भेदते, लखन लाल के बोल
परशुराम अब क्या कहें, धैर्य गया है डोल //34.//

शान्त तभी हो क्रोध अब, प्रत्यंचा को खींच
राम सभी के सामने, भरी सभा के बीच //35.//

प्रत्यंचा जब खींच दी, दिए सभी आशीष
हाथ जोड़ बोले परशु, धन्य-धन्य जगदीश //36.//

सिया स्वयम्वर देखकर, आनन्दित सब लोग
धूम धाम बारात में, खाते छप्पन भोग //37.//

हित चाहे जो आपका, मानो उसकी बात
सबसे बढ़कर मित्र वह, समझो उसको तात //38.//

दूर रहो उस पन्थ से, उलटी दे जो सीख
राम भक्ति अपनाइये, ये सर्वोत्तम भीख //39.//

यदि मन्त्री लोभी बड़ा, करे राज का नाश
और वैद्य भी लालची, तब समझ सर्वनाश //40.//

राम नाम अपनाइये, लालच खुद मिट जाय
सब संकट मिटते वहाँ, जीवन में सुख छाय //41.//

मीठी वाणी बोल कर, मन मोहे हर कोय
लेकिन मनमें विष भरा, हित न किसीका होय //42.//

राम नाम ही बोलिये, हित सबका ही होय
राम नाम है वो सुधा, जिसका तोड़ न कोय //43.//

पाप यही सबसे बड़ा, शरणागत का त्याग
दया सभी में श्रेष्ठ है, जीवन का यह राग //44.//

रामायण से सीखिए, नीति-प्रीति अनुराग
शत्रु विभीषण नाथ का, फिर भी किया न त्याग //45.//

लोग जहाँ प्रसन्न नहीं, वहाँ न जाओ आप
जिया रमाओ राम में, मिटें सभी सन्ताप //46.//

राम नाम वह तेज है, तमस कहीं ना व्याप्त
जिधर न कुछ दीखता, ‘राम नाम’ पर्याप्त //47.//

अनहोनी होगी नहीं, होनी है तो होय
हैं प्रभु तेरे साथ जब, फिर क्यों रोना रोय //48.//

जीवन के हर युद्ध को, राम भरोसे छोड़
प्रभु तेरे संघर्ष को, देंगे अच्छे मोड़ //49.//

निन्दा से निन्दा मिले, शर्मिन्दा हो ज्ञान
औरों को सम्मान दे, मिले तुझे सम्मान //50.//

दूजों के अपमान से, यश न तुझे मिल पाय
रहा सहा ये तेज भी, क्षणभर में मिट जाय //51.//

तन सुन्दर तो गर्व क्यों, एक दिवस ढल जाय
पैदा नेक विचार कर, कायजयी कहलाय //52.//

ग़लत राह कोई चुने, दे दो अच्छी राय
सबसे उत्तम मार्ग यह, यही सभी को भाय //53.//

रावण की लंका जली, बजरंग थे अशान्त
चित्रकूट के धार पर, हनुमंत हुए शान्त //54.//

भेज दिए थे राम जी, ज्वाला करने शान्त
चित्रकूट के धाम यूँ, राम जपे विक्रान्त //55.//

चित्रकूट के तीर्थ पर, लंका के उपरान्त
धारा में हनुमान जी, अग्नि किये थे शान्त //56.//

सज्जन के साथी बनो, भली करेंगे राम
दुर्जन मित्र न राखिये, आप हुए बदनाम //57.//

सियाराम यदि नाम है, सज्जन समझें लोग
मर्यादा रख राम की, तुझे मिला यह योग //58.//

भटके चौरासी जगह, तब मानव तन पाय
ये चोला भी व्यर्थ है, राम न बोला जाय //59.//

छोड़ दे तू बुरे व्यसन, जपता रह श्रीराम
अच्छे कर्मों से बने, तेरे बिगड़े काम //60.//

तन की आभा वस्त्र है, मन की शोभा बात
उत्तम बातें कीजिये, याद रहे दिनरात //61.//

हृदय वस्त्र यदि साफ़ है, तन भी शोभा पाय
तेरा उलटा आचरण, तेरा मान घटाय //62.//

जिसकी दासी इन्द्रियाँ, उसको उत्तम मान
वो नर राम समान है, मिले उसे सम्मान //63.//

त्याग दिए जिसने व्यसन, वो नर बने महान
राज सुखों को त्याग कर, बढ़ी राम की शान //64.//

तप से सब कुछ प्राप्त हो, तप से है संसार
तप से आवें राम प्रभु, तप का तेज प्रहार //65.//

ब्रह्मा जी ने सृष्टि की, रच डाला संसार
पालक इसके विष्णु जी, शिव करते उद्धार //66.//

सुग्रीव-विभीषण सखा, दुःख से दिया उभार
कहा मित्र जब राम ने, सत्ता दी उपहार //67.//

सुःख-दुःख में जो मित्र के, आते हर पल काम
प्रभु उनके संकट हरे, प्रसन्न उनसे राम //68.//

गुण-अवगुण के साथ यदि, करते सोच-विचार
अच्छे मानव आप हैं, उत्तम यह व्यवहार //69.//

बुद्धिमान यदि मित्र है, समझो बेड़ा पार
मूर्खतापूर्ण आचरण, धरे बीच मझधार //70.//

लेन-देन में मित्र से, करो उचित व्यवहार
तुझको खुद सम्मान दे, तेरा यह सत्कार //71.//

अपशब्दों से होत है, चरित्र की पहचान
गुस्से में अपशब्द का, रखिए हर पल ध्यान //72.//

मुख आगे मीठा कहे, मारे पीठ कटार
ऐसे दुर्जन मित्र का, कीजिये बहिष्कार //73.//

छल है, माया रूप है, सब मिथ्या संसार
राम नाम से नेह कर, बाक़ी सब बेकार //74.//
प्रेमलोक सब स्वार्थ है, इससे पाओ मुक्ति
राम भजन हो रातदिन, ढूँढ़ो ऐसी युक्ति //75.//

पवित्र जल धोता रहा, युग-युग सबके पाप
सूरज-चन्दा की तरह, गंगा भी निष्पाप //76.//

समझ सको तो राम है, ना समझो तो मूर्ति
पूजा अगर ढकोसला, मत कर खानापूर्ति //77.//

सागर से दूरी धरो, नदिया जहाँ समाय
अस्तित्व कहाँ आपका, फिर आप न रह पाय //78.//

बड़े न लघु को राह दें, तो दुःख की ये बात
बूढ़ों का आशीष तो, हो सुःख की बरसात //79.//

है प्रेम नाम त्याग का, त्यागी बने महान
औरों के दुःख बाँटकर, बने राम भगवान //80.//

राम कहें संसार में, सबसे बढ़कर संतोष
जान है तो जहान है, दयाकर आशुतोष //81.//

धन में धन संतोष धन, जो उपजे मन शान्त
कृपा दृष्टि अपनी सदा, रखना लक्ष्मीकान्त //82.//

मन कर्म वचन से सदा, बोलते राम-राम
बन जाएँ सच मानिए, उनके बिगड़े काम //83.//

राम भक्ति वो फूल है, जिसका फल है ज्ञान
वर दे उनको शारदे, वो सब हैं विद्वान //84.//

जिसने पाया राम को, उसे न जग से काम
जिसको लागी राम धुन, वो पाए सुखधाम //85.//

पाए जो नर राम धन, वो सबसे धनवान
करते जो सबका भला, ऐसे हैं भगवान //86.//

जनम-मरण के कष्ट से, तारें प्रभु श्री राम
जीते जी जपते रहो, जाओगे श्री धाम //87.//

प्रसन्नचित जीवन रहे, बरस-बरस आराम
करके यही विचार तुम, जपो-जपो श्रीराम //88.//

बढ़ो सदा तुम लक्ष्य पर, मत होना भयभीत
जीवन में हरपल नहीं, समय यहाँ विपरीत //89.//

साहस कभी न छोड़िए, साथ सभी के राम
दैत्य बड़े बलवान थे, मगर गए हरि धाम //90.//

सियाराम समझे नहीं, कैसा है ये भेद
सोने का कैसा हिरन, हुआ न कुछ भी खेद //91. //

वाण लगा जब लखन को, रघुवर हुए अधीर
मैं भी त्यागूँ प्राण अब, रोते हैं रघुवीर //92. //

मेघनाद की गरजना, रावण का अभिमान
राम-लखन तोड़ा किये, वक़्त बड़ा बलवान //93. //

या देही से प्रीति क्या, एक दिवस मिट जाय
प्रीति करो श्री राम से, कई जनम फल पाय //94.//

मूरत मन्दिर राम की, भक्त झुकाए शीश
विपदा में हम पर सदा, दया करो जगदीश //95.//

जन्म-जन्म मैं आपका, बना रहूँ प्रभु दास
अपने भोले भक्त की, सुन लो ये अरदास //96.//

कहाँ मिलेंगे राम जी, हम खोजे नाकाम
राम तो हृदय में बसे, मैं भटका हर धाम //97.//

रावण कुल को तार के, किये जगत उद्धार
ऐसे दीनानाथ का, जनम-जनम आभार //98.//

राम-लखन से पुत्र हों, मात-पिता की चाह
रामायण जीवन बने, उत्तम है ये राह //99.//

जीवन बूटी कौन सी, सुझा नहीं उपाय
महावीर हनुमान ने, परवत लिया उठाय //100.//

जीवन व्यर्थ न कीजिये, करो राम के नाम
मानव जीवन कीमती, करो नेक हर काम //101.//

आस्थाओं के लेप से, भरे मानसिक घाव
रामभक्ति है वो किरण, उभरे आशा भाव //102.//

राम भक्ति के दीप से, सर्वत्र है प्रकाश
जगी सभी में चेतना, जगा नया विश्वास //103.//

राह कठिन हो दुख नहीं, बढ़े चलो दिनरात
रावण कुल व्यापक सही, देंगे उसको मात //104.//

हारा रावण, हरि विजय, युद्ध हुआ विकराल
प्रभु के सम्मुख ना चली, महा दुष्ट की चाल //105.//

रामविजयश्री पर्व का, अनुपम यह उपहार
सत्य-धर्म की जीत है, दीपों का त्यौहार //106.//

रामराज्य का लक्ष्य यह, भय मुक्त हो समाज
प्रतिदिन ही त्यौहार अब, है जनता का राज //107.//

राम अयोध्या आगमन, मौसम आया ख़ास
शिवजी आवाहन करें, ख़त्म हुआ वनवास //108.//
•••
// इति रामभक्त शिव दोहा छन्द //

[पिताश्री रामभक्त शिव (जीवनी) भी पढ़ें, साहित्यपीडिया पर उपलब्ध है।]

Language: Hindi
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