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29 Jul 2020 · 1 min read

रात गुज़र गयी

उसका शिकवा क्या जो बात गुज़र गयी
मेरी नींद तेरे ख़्वाबों के साथ गुज़र गयी

इन आँसुओं का तुमसे गिला क्या करते
इससे पहले भी कई बरसात गुज़र गयीं

चाँदनी के मुंतज़िर रहे चिराग़ भी न जलाए
चाँद आँगन में आते आते रात गुज़र गयी

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