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20 Jul 2021 · 1 min read

रात की सरगुज़शतें

बिस्तर आवाज़ लगते रह गए
मगर हम न गए
थके हुए तन की गुज़ारिशें अनसुनी करके
हम अपने मन में विलीन हो गए

अधूरी मंज़िलों को ख्वाबों में मुकम्मल करने लगे
बीते क़दमों पर वक़्त ज़ाया करने लगे
वहमी मंज़रनामों से ज़ख्म खाने लगे
बेबुनियाद सवालातों से उसपर नमक छिड़कने लगे

करवटें बदल ली इतनी
की चादर की सिलवटें भी शिकवा कर बैठी
चाँद की इस चांदनी में
नींद के महरूम हम वजह खोजने लगे

ख्यालातों के इस सफर में
हम नींद को गवा बैठे
खुद न सो सके
रात को लोरी सुना बैठे

Language: Hindi
1 Like · 290 Views
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