राजयोग महागीता:: गुरुक्तानुभव ( घनाक्षरी: ४)पोस्ट९पोस्ट९
क्रोध क्या यह क्रूरता , कठोरता , कुटिलता ,
त्याज्य है असंतोष , त्याग विष के समान ।
नृप! करुणा क्या आर्जव , मित्रता ,सरलता ,
तू न पृथ्वी , सलिल है , न ही वायु ,अग्नि, व्योम,
निज को इन सबको साक्षी, चैतन्य जान ।
तू निश्चय ही ज्ञानी है , सुपात्र नृपेंद्र सत्य ,
चाहता है जानना – वीतरीगता का ज्ञान ।।अध्याय:१/ ४
—— जितेंद्रकमलआनंद