राजनीति के आंकड़े
राजनीति के आंकड़े
ना गलते पानी से
ना जलते आग से
ना दबते मिट्टी से
ना पिघलते भाव से…
ये जिंदा भूत है
समय से क्रूर-बेख़ौफ़ है
प्रकाश से तेज़
अंधकार से गहरे
ये राजनीति के आँकड़े
नहीं रहते कहीं ठहरे..
आसान नही
अनजान नही
नजरों के सामने है
मगर नजरों में नही
यही इनका अंदाज है
गुलाम है किंतु
मालिक के बफादार नही..
पेट भरते लालसाओं से
पलते दिमागी कब्रिस्तान में
प्यास बुझाते है खून से
खोपड़ी में भरके हलाहल
राजनीति में मचा देते कोलाहल
ये जिंदा भूत है
भूत के दूत है
यार है कल के
कल के ही काल है
राजनीति के आंकड़े
चढ़ते है – गिरते हैं, दबते है-उछलते है
पर समय अपनी चाल चलते है….