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8 Jun 2021 · 1 min read

रागिनी

देखा उसने मुड़कर,
पर पीछे नहीं,आगे।

कर दिया भ्रमित,
पानी की दो बूँदे।

बहे थे पर गगन से नहीं,
नैनो के अंबर से ।

ओस की बूंँदे पड़ी ,
पर कमल के पुष्प में नहीं ।

ह्रदय के कमल पर,
निश्छल निष्कपट ।

महक उठा मन ,
खिल गया मुख ।

देखा उस सजीव ,
मन-मोहित रूप को ।

कर रहा था विनय,
मुझे से नहीं ईश्वर से ।

करना तू रक्षा,मेरी नहीं ,
उस जाते हुए प्रियजन की ।

#रचनाकार- बुद्ध प्रकाश ।

Language: Hindi
3 Likes · 317 Views
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