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1 Oct 2018 · 1 min read

#कुंडलिया//यथार्थ

प्यासा मन यश का हुआ , नोटंकी की टेक।
नायक सम हैं चित्र में , कर्म नहीं शुभ एक।।
कर्म नहीं शुभ एक , चलन हुआ अरे कैसा।
नारे भाषण ख़ूब , करे नहीं कहें जैसा।
सुन प्रीतम की बात , पकड़ सच्चाई पासा।
सच का जल हो एक , रहे क्यों मन फिर प्यासा।

औरत का किरदार है , देवी सम साकर।
शक्ति लिए हर रूप में , रहे किसी आकार।।
रहे किसी आकार , करो तुम मान हमेशा।
इसके बिन तुम गौण , यही सच्चा संदेशा।
सुन प्रीतम की बात , असफल बनेगी चाहत।
जब तक देती साथ , नहीं जीवन में औरत।

#आर.एस.’प्रीतम’

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