रण्डी
वो जो मेरे जिस्म से हर रात खेला करता है
शौक है उसको वो माॅं जाई को रण्डी कहता है
जले भी हम हम्ही वो फूल जो बिस्तर में कुचलेजाएं
हमहिं ने उठ कर सलाम किए हमें ही वो दुत्कारा करता है
कभी झुमका कभी कंगन कभी गजरा कभी हार दिया
ये रात की बात थी अहले सुबह उठ कर वो दुत्कारा करता है
~ सिद्धार्थ