बाल कविता*रंग बिरंगी मैं तितली हूं*
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रंग बिरंगी मैं तितली हूं
एक रचना
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बहुरंग बिरंगी तितली हूं मैं,रंग बिरंगी मैं तितली हूं।
सबके मन को ही भाती हूं , आंखों की मैं पुतली हूं।।
एक फूल से फुदक फुदक कर मैं दूजे पर जाती हूं।
छोटे अल्हड़ से बच्चों का मन नित ही बहलाती हूं।।
जब कोई मुझको छूता है, तुरत फुर्र उड़ जाती हूं।
कोशिश करते मिलकर बच्चें, मगर हाथ नहि आती हूं।।
बालकपन की मैं सहचर हूं, सबको बहुत लुभाती हूं।
थकती नहीं दूर उड़ने से,टहल दूर तक आती हूं।
हाड-मांस की काया है नहि,तिनके जैसी पतली हूं।
बहुरंग बिरंगी तितली हूं मैं,रंग बिरंगी मैं तितली हूं।।
?अटल मुरादाबादी ?