ये मुहब्बत अभी कुँवारी है
मौत का कर्ज़ तुझ पे भारी है
ज़िन्दगी तू नहीं हमारी है
इश्क में कुछ नहीं रहा अपना
दिल की दौलत भी हमने हारी है
फूल सब झर गये खुशी के जब
शूल से ज़िन्दगी सँवारी है
मिल रहा है सुकून भी इसमें
जाने कैसी ये बेकरारी है
है तभी आसमान ये अपना
जब तलक ये जमीं हमारी है
यूं उठा कर पलक झुका लेना
खूबसूरत अदा तुम्हारी है
ओढ़ लेते हँसी गमों पर हम
सीख ली खुद ये होशयारी है
“अर्चना” पल रही है दिल मे ही
ये मुहब्बत अभी कुँवारी है
डॉ अर्चना गुप्ता