ये जीस्त वक़्त के सहते प्रहार गुज़री है
ये जीस्त वक़्त के सहते प्रहार गुज़री है
कभी तो जीत कभी ले के हार गुज़री है
डरे डरे से कुसुम दर्द है हवाओं में
उदास हो के यहाँ से बहार गुजरी है
कि होके टुकड़े ही टुकड़े बिखर गए दिल के
ये बात इतनी हमें नागवार गुज़री है
कभी तो आज का सोचा कभी यहाँ कल का
ये जीस्त सोचते करते विचार गुजरी है
कभी तो देती रही जीस्त हर खुशी मुझको
कभी ये सहते हुये गम हजार गुजरी है
कभी सुकून मिलेगा हमें भी दो पल का
तमाम उम्र ही कर इंतज़ार गुज़री है
तुम्हारे बिन हुई वीरान ज़िन्दगी अब तो
बहाते ‘अर्चना’ आँसू की धार गुज़री है
9
डॉ अर्चना गुप्ता
21-11-2017