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13 Aug 2020 · 2 min read

ये अब मुझे, मरने भी नहीं देती!!

बना-और बनी जब गये हम बन,
मिल गया एक नव जीवन,
अब तक मात -पिता एवं भाई भौजाई,
यही तो थे अपने मन मस्तिष्क में समाए,
कभी-कभार बहने और भतीजे,
जिन पर हम पसीजे,
किन्तु जब से पत्नि आई,
जीवन में आ गई थी नई अंगड़ाई।

पहले पहल जब हम मिले,
एक-दूसरे को समझने लगे,
नव जीवन का नया यह रिश्ता,
अब औरौं से अधिक पसीजता,
नयी उमंग,नयी तरंग,
नये अफसानों के संग,
बढ़ते हुए यह कदम,
दो शरीर एक वदन।

घर संसार आगे बढ़ा,
चुनौतियों का अम्बार लगा,
संघर्षों से नाता जुड़ा,
जूझने का जज्बा जगा,
कभी जोस से भरपूर,
कभी थक हार कर चुर,
आ पहुंचे इतनी दूर।

मात-पिता की छाया से मरहूम,
पुत्र-पुत्रियों के मोह में मसगूल,
भाई बहन से हो गये विलग,
सबकी राहें अलग अलग,
अपने अपने कुनबों तक गये सिमट,
बस एक ही धुन एक ही रट,
अपनी जिम्मेदारी को निभाने की हट,
और इसी में गये हम पुरी तरह खप।

अब जब हमने भी निभा दी,
अपने हिस्से की सारी जिम्मेदारी,
अब हम पर उम्र की दिख रही झलक है,
बच्चों की अपनी अलग ही डगर है,
वह भी अब उसी दौर से रहे निकल,
जिससे गुजरे थे हम भी कल,
अब हमारा भी जीवन एकांकी जीवन बन गया,
बना-बनी का यह रूप बुढ़ापे में ढल गया।

अब एक-दूसरे को नये सिरे से देख रहे हैं,
अपने पुराने दिनों को याद कर रहे हैं,
जब एक-दूजे को समझने में लगे हुए थे,
फिर भी हम कुछ भी नहीं समझ रहे थे,
सिवाय इसके की वह तो एकात्म तक का सफर था,
एक नयी सृष्टि को जन्म देने को बेसब्र था,
आज हम एक-दूसरे पर आश्रीत हो गये हैं,
अब एक दूसरे को ज्यादा चाहते हैं ,
एक दूसरे से दूर रह नहीं पाते हैं ।

कभी बिन बताए गए तो व्याकुल हो जाते हैं,
जब तक मिल नहीं जाते, तब तक अकुलाते हैं,
एक दूसरे को अलग जाने नहीं देते,
किसी को कुछ हो गया तो क्या करेंगे,
एक दूसरे के बिना कैसे रहेंगे,
बस इन्हीं चिंताओं में खोया रहने लगा,
गर मैं चला गया पहले तो इसका क्या होगा,
गर यह चल बसी पहले तो, मैं कैसे रहूंगा,
इसकी आसक्ति अब मुझे उबरने नही देती,
इसकी यह बेबसी अब मुझे मरने नही देती।।

Language: Hindi
3 Likes · 8 Comments · 406 Views
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