युवा लक्ष्यहीन हो रहा
भटक रहा ,
उलझ रहा ,
निराश तू ,
खामोश तू ,
राजनीति का शिकार तू ।
फिर भी
बबंडर हो रहा
युवा लक्ष्यहीन हो रहा ।
धर्म की आड़ में
असभ्यता के जाल में
बाजार की शान में
युवा मलिन हो रहा
युवा लक्ष्यहीन हो रहा ।
नसा सर चढ़ रहा
धुंए में जीवन घुल रहा
काम वासना का
हथियार हो रहा
युवा लक्ष्यहीन हो रहा ।
घमंड सर चढ़ रहा
बाजार में निर्धन हो रहा
रिस्तों में कांटे वो रहा
होटल में अकेला सो रहा
युवा लक्ष्यहीन हो रहा ।
धैर्य धीरज खो रहा
माया बाजार में
अलौकिक हो रहा
तकनीकी का
दीवान हो रहा
युवा लक्ष्यहीन हो रहा ।