युद्ध
मनुष्य लड़ता है अपने जीवन में असंख्य युद्ध,
मगर जीतता कितने युद्ध ?
प्रति पल प्रतिक्षण बस युद्ध ! युद्ध ! युद्ध !
सुबह शाम ,दिन रात युद्ध ।
कभी तो स्वप्न में भी युद्ध ।
अपनों से युद्ध ,गैरों से युद्ध ।
पड़ोसियों से युद्ध , रिश्तेदारों से युद्ध ।
अपने आर्थिक हालातों से युद्ध।
देश की कुव्यवस्था से युद्ध ।
अपने अधिकारों / कर्तव्यों के लिए युद्ध।
अपनी असंख्य अभिलाषाओ,मनोकामनाओं से युद्ध ।
अपने जीवन में होने वाली अप्रत्याशित महामारी ,
स्वजन की मृत्यु ,क्षति और हादसों के लिए
तकदीर से युद्ध ।
और कभी इन सबके लिए भगवान को जिम्मेदार
मानते हुए भगवान से युद्ध ।
और अंत समय जब अपने चित्रपट की भांति
अपने जीवन भर के कर्म दृष्टि गोचर हो ।
तो अपने आप से युद्ध ।
और इसके बाद …
ना कोई शिकायत ,ना उलाहने , ना ईर्ष्या द्वेष ,मन मुटाव
बस चिर शांति ,
खत्म सारे युद्ध !