युगों की निशानियां
सत्य प्रेम करुणामय जीवन, सतयुग यही निशानी है
झूठ हिंसा द्वेष कलह, कलयुग की यही कहानी है
सत्य प्रेम करुणा, जब व्यवहार में आते हैं
वर्तमान जीवन में ही हम, सतयुग में आ जाते हैं
झूठ हिंसा द्वेष कलह, जब व्यवहार में आते हैं
जीवन के इन दुखद पलों को, कलयुग में जी जाते हैं
सतयुग त्रेता द्वापर कलयुग
सत्य और असत्य पर निर्भर होते हैं
कैसा हम जीवन जीते हैं, उस काल में हम आ जाते हैं
मानव समाज के जीवन में, जब सच का घनत्व बढ़ जाएगा
मानव जीवन का यही काल जग में सतयुग कहलाएगा
झूठ कपट हिंसा द्वेष कलह समाज में जब बढ़ जाएगा
यही है काल जीवंत धरा पर, जो कलयुग कहलाएगा
सुरेश कुमार चतुर्वेदी