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24 Dec 2020 · 1 min read

यादें

भूल
चले है सब
आज
डाकिये को

प्यार
अपनेपन
सुख दुःख
के समाचार
का माध्यम थे
डाकिये

धूप ठ॔ड
बारिश
कभी पैदल
तो कभी
साईकिल
पहुंचाते थे संदेशा
डाकिये

चिट्ठी लिखते
तो कभी
पढ़ कर
सुनाते भी थे
डाकिये

माँ की
उम्मींदे
बहन की
आस थे
डाकिये

बदला जमाना
स्मार्ट फोन ने
बदल दिये
रिश्ते
आने वाली
पीढी को
बताना है
डाकियों के
बारे में
सब के
लाडले हैं
डाकिये
भूला
सकते नहीं
डाकियों को

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

Language: Hindi
5 Likes · 5 Comments · 348 Views
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