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28 Jun 2020 · 1 min read

” यादें “

एक झोँका सा, हो खिड़की जो अधखुली सी कोई,
आ गई याद फिर से बात, अनकही सी कोई।

जवाँ रहता है अजब इज़्तेराब, उसके लिए,
ग़ज़ल हो मीर या ग़ालिब की,अनसुनी सी कोई।

क्यूँ समझता है वो, कि मुझको कोई होश नहीं,
भाँप जाता हूँ उसकी बात, अनमनी सी कोई।

चुप जो रहता हूँ कभी, दौर-ए-सितम उसके,
ज़माना कान लगाए हो, बतकही सी कोई।

तलाशता हूँ अपनी ज़ीस्त मेँ, समतल सी ज़मीँ,
सँग-ओ-ख़ार, जो हुई हो, खुरदुरी सी कोई।

सुना है, हो गया मौसम था, ख़ुशगवार सा कल,
मिरे आँगन भी थी क्या धूप, वो उजली सी कोई।

किस की ख़ातिर अभी भी, गोशा-ए-ज़हन महफ़ूज़,
आई होने को, उसकी याद भी, धुँधली सी कोई।

अभी भी जुस्तजू, क़ायम है मगर क्यूँ उसकी,
छोड़ कर दिल पे, गया छाप हो गहरी सी कोई।

दौरे-फ़ुरक़त, हसीँ अहसास-ए-क़ुरबत “आशा”
अदा-ए-शोख़ कली, हो जो अनछुई सी कोई..!

इज़्तेराब # अधीरता, restlessness
सँग-ओ-ख़ार # पत्थरों एवं काँटों(के साथ),with stones and thorns
गोशा-ए-ज़हन # मस्तिष्क का एक कोना,a corner of mind
महफ़ूज़ # सुरक्षित,safe, reserved etc.
दौरे-फ़ुरक़त # वियोग काल मेँ,while aloof
क़ुरबत # क़रीबी,closeness

रचयिता-
Dr.Asha Kumar Rastogi
M.D.(Medicine),DTCD
Ex.Senior Consultant Physician,district hospital, Moradabad.
Presently working as Consultant Physician and Cardiologist,sri Dwarika hospital,near sbi Muhamdi,dist Lakhimpur kheri U.P. 262804 M 9415559964

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