Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
11 Feb 2018 · 3 min read

यात्रा वृत्तांत

मेरी प्रथम वायुमार्ग यात्रा
*********************

मैं राहुल प्रताप सिंह “प्रताप”
आप सभी को अपनी वायुमार्ग से की गई प्रथम यात्रा के बारे बताना चाहता हूं।
कृपया ध्यान से पढ़िएगा।
जब २५ जनवरी को दिल्ली जाने के लिए मैंने हवाईमार्ग का चयन कर जब अपनी टिकट देखा तो हैरानी हुई; इस हैरानी कारण था कि टिकट में आरक्षित बैठक सीट क्रमांक उपलब्ध नहीं था, तो मैंने विलंब न करते हुए ग्राहक सेवा केन्द्र में संपर्क किया वहां से प्रदत्त जानकारी के माध्यम से बता रहा हूं।
मैंने उन्हें बताया कि मैं पहली बार वायुमार्ग से यात्रा करने वाला हूं, और मेरी टिकट पर सीट क्रमांक उपलब्ध नहीं है, तो संभवतः वो हंसने लगी और बडे मधुर ध्वनि में बोली ‘सर आपको एयरपोर्ट पर चेक-इन करना होगा और २ घंटे पहले पहुँचना होगा यदि आप ऐसा नहीं करना चाहते हैं तो आप वेब चेक-इन कर सकते हैं किन्तु यह शुभ-कार्य आप ४८ घंटे पहले ही कर पाएंगे”।
मैंने पूछा,” क्या दो घंटे पहले जाना आवश्यक है?”
जी नहीं! कहते हुए उन्होंने पुनः जानकारी दी कि यदि आप वेब चेक-इन कर लेते हैं तो मात्र पैंतालीस मिनट पहले जाए।
मैंने कहा, ठीक है। और बात समाप्त हो गई।
मैंने कहा, “अब दिल्ली दूर नहीं!”
देखते-देखते वो दिन आ ही गया जब मुझे दिल्ली के लिए प्रस्थान कर चाहिए था। मैं सुबह ४:१५ को नींद से जागा और अपने मित्रो को जगाते हुए बोला, उठो यार अब जाने का समय आ गया है।
और मैं नहाने के लिए निकला ही था कि एक संदेश आया कि आपका वायुयान आपकी प्रतिक्षा में #नजरें_बिछाए_बैठा है, मैं बाहर आकर देखा और वापस स्नानगृह पर पहुँच गया।
तैयार हुआ और निकल पड़ा दिल्ली के लिए।
टैक्सी चालक को बुलाया और वायुयान पतन केंद्र पर पहुँच गया, टैक्सी चालक की असीम अनुकम्पा से दो घंटे पहले ही पहुँच गया वहाँ पहुंच कर देखा कि पंक्तिबद्ध सभी यात्री खड़े हुए हैं आपना मोबाइल, पर्स और सिक्के बेल्ट एक छोटी-सी प्लास्टिक की थैली में लेकर । “मैं पहली बार वायुमार्ग से यात्रा कर रहा था” तो जैसे सभी कर रहे थे वैसे मैं भी पंक्ति में आ गया।
जैसे ही चेक-इन करनें के लिए उसके पास पहुंच गया तो जांचकर्ता के हाथ में एक यंत्र था जो कि टीं-टीं करने लगा मैंने देखा कि ताले की चाभी मेरे जेब में ही रह गई थी।
और किसी तरह अंदर आ गया।
समान लिया और प्रतिक्षा करने बैठ गया।
मैं चुपचाप देख रहा था कि लोग आ-जा रहे हैं, क्योंकि “मैं पहली बार वायुमार्ग से यात्रा कर रहा था”।
पूरे एक घंटे ३० मिनट प्रतिक्षा में बीत गए। फिर वो पल आया जब पुनः मधुर ध्वनि संदेश सुनाई दिया कि दिल्ली जाने वाले यात्रियों का हम स्वागत करते हैं।
मैंने आपना “बोरिया-बिस्तर बांधकर” पुनः पंक्ति में खड़ा हो गया और आगे की ओर बढ़ते हुए आपना बोर्डिंग-पास वहां की महिला सुरक्षा अधिकारी के हाथ में दे दिया और नीचे उतर कर आ गया। फिर क्या था मैं अपने सभी मित्रों और प्रशंसकों के साथ कुछ चित्र साझा किया और वायुयान पर चुपचाप बैठ गया, क्योंकि मैं पहली बार वायुमार्ग से यात्रा कर रहा था।
अब वायुयान के अंदर आने के बाद एक रहस्य का पता लगा…

आगे और भी है द्वितीय अंक में प्रकाशित करता हूं।

Language: Hindi
402 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
आदिम परंपराएं
आदिम परंपराएं
Shekhar Chandra Mitra
चंडीगढ़ का रॉक गार्डेन
चंडीगढ़ का रॉक गार्डेन
Satish Srijan
Bundeli Doha-Anmane
Bundeli Doha-Anmane
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
"इतिहास"
Dr. Kishan tandon kranti
रामायण  के  राम  का , पूर्ण हुआ बनवास ।
रामायण के राम का , पूर्ण हुआ बनवास ।
sushil sarna
अगर आप
अगर आप
Dr fauzia Naseem shad
गुरु महिमा
गुरु महिमा
विजय कुमार अग्रवाल
जो भूलने बैठी तो, यादें और गहराने लगी।
जो भूलने बैठी तो, यादें और गहराने लगी।
Manisha Manjari
धन बल पर्याय
धन बल पर्याय
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
इक तेरे सिवा
इक तेरे सिवा
Dr.Pratibha Prakash
मां तुम बहुत याद आती हो
मां तुम बहुत याद आती हो
Mukesh Kumar Sonkar
आधार छंद - बिहारी छंद
आधार छंद - बिहारी छंद
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
*सभी को चाँद है प्यारा, सभी इसके पुजारी हैं ( मुक्तक)*
*सभी को चाँद है प्यारा, सभी इसके पुजारी हैं ( मुक्तक)*
Ravi Prakash
ठंडक
ठंडक
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
गति केवल
गति केवल
*Author प्रणय प्रभात*
देर आए दुरुस्त आए...
देर आए दुरुस्त आए...
Harminder Kaur
सोच
सोच
Shyam Sundar Subramanian
वासना और करुणा
वासना और करुणा
मनोज कर्ण
बहुत ख्वाहिश थी ख्वाहिशों को पूरा करने की
बहुत ख्वाहिश थी ख्वाहिशों को पूरा करने की
VINOD CHAUHAN
उठ जाग मेरे मानस
उठ जाग मेरे मानस
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
तिरंगा
तिरंगा
लक्ष्मी सिंह
"सफ़ीना हूँ तुझे मंज़िल दिखाऊँगा मिरे 'प्रीतम'
आर.एस. 'प्रीतम'
ऐसा इजहार करू
ऐसा इजहार करू
Basant Bhagawan Roy
जीवन की परख
जीवन की परख
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
ख्वाब सुलग रहें है... जल जाएंगे इक रोज
ख्वाब सुलग रहें है... जल जाएंगे इक रोज
सिद्धार्थ गोरखपुरी
चला गया
चला गया
Mahendra Narayan
भय आपको सत्य से दूर करता है, चाहे वो स्वयं से ही भय क्यों न
भय आपको सत्य से दूर करता है, चाहे वो स्वयं से ही भय क्यों न
Ravikesh Jha
सत्संग शब्द सुनते ही मन में एक भव्य सभा का दृश्य उभरता है, ज
सत्संग शब्द सुनते ही मन में एक भव्य सभा का दृश्य उभरता है, ज
पूर्वार्थ
*कैसे  बताएँ  कैसे जताएँ*
*कैसे बताएँ कैसे जताएँ*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
पड़ोसन की ‘मी टू’ (व्यंग्य कहानी)
पड़ोसन की ‘मी टू’ (व्यंग्य कहानी)
Dr. Pradeep Kumar Sharma
Loading...