यह संसार, मायामयी मस्ती l
गुरू कबीरा को प्रणाम ( शृंखला )
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मायामयी मस्ती की पाठशाला l
सहज ज्ञान ले लो निराला निराला ll
प्यास पनपे परम परम हो, पर न हो,
महकती मधहोश करती, मधुशाला l
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यह संसार, मायामयी मस्ती l
दुखों की सुविधाएँ, बडी सस्ती ll
सुख क्या होता, कोई ना जाने l
तो दु:ख पा ही गये, जबरदस्ती ll
जीने, जाने में, जरा फरक हैं l
पर “प्यास” ले, ये दुनियाँ तरसती ll
अरविन्द व्यास “प्यास”