यह तेरा,मेरा और उसका शहर
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नयन धुले हैं पर,धुंआ-धुआं है शहर।
खामोशियों में जज्ब,नपा-तुला है शहर।
वीरान जंगल का सिलसिला है शहर?
परत दर परत प्रेत का टीला है शहर।
हर दरवाजे पर ही अधखुला है शहर।
अमृत-कलश में जहर लिए मिला है शहर।
भीड़ भरे जश्न में लो तन्हा है शहर।
पता नहीं शहर में कहाँ-कहाँ है शहर।
किए हुए जज्ब समूची रौशनी है शहर।
उजाले की सौगंध बहुत अँधेरा है शहर।
बन गया दानव का,देवताओं का शहर।
मानवीय संवेदनाओं का खन्डहर है शहर।
होता किस्मत जैसा वैसा बेचारा है शहर।
बिना लक्ष्य के भागता,हांफता है शहर।
इस सदी का बहुत बड़ा चुटकुला है शहर।
हवाएं रो रही पर,निर्ल्लज सा हंसता है शहर।
मर्शिया पर कवि सा तालियां मांगता शहर।
विष्णु सा छली,इंद्र सा तथा इर्ष्यालू शहर।
सारे संसाधन पीकर भी प्यासा है शहर।
आना ना,अतिथियों को भूख बांटता है शहर।
पता नहीं किस-किस के आंसुओं से गीला है शहर।
यह मैं,तुम और वह,यह तेरा,मेरा और उसका शहर।
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