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17 Feb 2018 · 8 min read

यह कैसा परिणाम..?

यह कैसा परिणाम..?
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भैया के जाते ही भाभी ने मुझे बुलाया… देवर जी कहाँ हो भोजन तो कर लो वर्ना भोजन ठंढा हो जायेगा,
कितना मिठास था उनके आवाज में , स्नेह रस से लबालब।
उनके एक एक शब्द से स्नेह, ममत्व, माधुर्य और प्रेम टप टप टपक रहे थे। भाभी की मधुर वाणी को सुनते ही मैं भागता हुआ उनके पास पहुंचा।

चलो भाभी खाना दो बहुत जोरों की भुख लगी हैं , फिर थोड़ा रुककर…भैया ने खाना खा लिया क्या ? मैने उनसे पूछा।
भाभी ने बड़े ही स्नेहिल भाव से जवाब दिया…हाँ खा भी लिए और काम पर भी चले गए, तूं भी जल्दी से खालो और पढनें बैढो , तुम्हारे परीक्षा को अब ज्यादा समय शेष नहीं। वैसे तुम्हारी पढाई चल कैसी रही है परीक्षा में किसी प्रकार की कोई समस्या तो उत्पन्न नही होगी न ? भाभी ने सशंकित भाव से प्रश्न किया। ….नहीं भाभी मैने पढाई में किसी प्रकार की कोई भी कोताही नहीं की है अतः परीक्षा में किसी भी प्रकार की कोई समस्या उत्पन्न होने का प्रश्न ही नहीं उठता, आप निश्चिंत रहें ..मैने उनके प्रश्नों का बड़े ही सरलता के साथ सहज भाव में जवाब दिया।

समीर बड़े ही सरल स्वभ का एक सीधा साधा हसमुख इंसान था, वह एक प्राईवेट कम्पनी में सुपरवाइजर के पद पर कार्यरत था उसके सानिध्य में कार्य करने वाले सभी कर्मचारी उसे अत्यधिक सम्मान देते और प्यार करते थे कारण वह हर वक्त सबका भला सोचता, सबको यथोचित सम्मान देता कर्मचारियों के हित से सम्बंधित किसी भी कठिन से कठिन परिस्थिति से लड़ जाता। वहाँ कार्यरत प्रत्येक कर्मचारी को वह अपना परिवारिक सदस्य ही समझता । वैसे भी इस जहान का यह अनोखा रिवाज है कि सम्मान पाने के लिए सम्मान देना निहायत ही जरूरी है, प्यार सर्वथा उसे ही प्राप्त होता है जो दूसरों को प्यार करना जानता हो।

सफलता जहाँ इंसान को शांत व सभ्य बना देती है वहीं असफलता या अतिशिघ्र सफल होने की ललक किसी के सर पे पाव रख कर उससे आगे निकलने की आकांक्षा इंसान को उग्र बना देती है और इस स्थिति में इंसान किसी दुसरे का अहित करने तक को उतारू हो जाता है। समीर के कम्पनी में रघु नाम का एक ऐसा इंसान भी था जिसे समीर फुटी आंख न भाता। सभी कर्मचारियों से उसका इतना लगाव उसके प्रति कर्मचारियों के आंखों में दिखने वाले प्रित के भाव रघु के हृदय को घायल करते वह हर क्षण इसके अहित की कामना करता किस तरह समीर का बढता प्रभाव कम हो इसी जुगत में लगा रहता । जहाँ चाह वहाँ राह …. जब हम अपने लिए कोई लक्ष्य निर्धारित कर लें तो उसे पूर्ण करने के रास्ते खुद ब खुद निकल ही आते हैं और यहाँ समीर कम्पनी में कर्मचारियों के हित में तल्लीन रघु के लिए अपने अहित का प्रति पल कईएक मार्ग प्रसस्त करता जा रहा था।

आज मेरे बोर्ड एक्जाम का पहला दिन, भाभी सुबह से ही नहा धो कर घर में स्थापित देवताओं के संमुख मेरे सकुशल परीक्षा के निहितार्थ प्रार्थना में लीन थी शायद वो पूरी रात जागती हीं रहीं कारण जैसे ही मेरी निन्द खुली और घड़ी पे नजर गई सुबह के छः बज रहे थे भैया अभी भी अपने कमरें में सोये हुए थे, मै धीरे से उठा और रसोईघर में पानी लेने गया , एक्वागार्ड की मशीन रसोईघर में ही लगी थी…मेरे भैया का मानना था शुद्ध जल स्वस्थ रहने के लिए परम आवश्यक है ।

जब मैं पानी लेने रसोईघर में प्रवेश किया तो यह देख कर दंग रह गया की भाभी रसोई बना चूकी थीं और इसी बात से मैने अंदाजा लगाया की शायद वो रात भर सोयीं नही थीं। …..मेरे पैरों की आहट पाकर भाभी ने पीछे मुड़कर मुझे देखा और मधुर स्वर में बोलीं ….सुभम उठ गये तुम ? चलो जल्दी- जल्दी नित्यक्रिया से निवृत्त हो नहा- धो लो, आज तुम्हारे जीवन का एक अहम दिन है अतः भगवान के सम्मुख माथा टेककर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना बहुत जरूरी है तो जल्दी से नहा धोलो और तैयार होकर आ जाओ मेरे पास, भोजन भी तैयार है पूजा करके भोजन करो और फिर तुम्हारे भैया तुम्हें परीक्षा भवन तक बाईक से छोड़कर डीऊटी चले जायेंगे।

मैं तैयार होकर भाभी के पास पहुंचा और उनके पैरों में गीर फड़ा…. भाभी मुझे आशीर्वाद दो मैं अपनी परीक्षा अच्छे से दूं और अव्वल दर्जे में पास करूँ। भाभी ने मेरे सीर भर स्नेह भरा हाथ फेरते हुए उठाया और पुचकारते हुए बोली ….अरे पगले हमारा आशीर्वाद तो सदा तुम्हारे साथ है तुम्हें जीवन की सारी खुशियाँ प्राप्त हों तूं जीवन में सफलता के अंतिम शीखर तक पहुंचे हमारी तो यहीं कामना है और ईश्वर से बस यहीँ प्रार्थना।
अरे पगले मेरे चरणों में गीरने के बजाय ईश्वर के चरणों में गीरकर अपने सफलतम जीवन के निहितार्थ प्रार्थना करो…उन्होंने बड़े ही मधुर भाव से हमसे कहा!

भाभी हमने जबसे होस सम्भाला है तबसे आपको और भैया को हीं अपना भगवान अपना इष्ट माना है , मैने इन कागद के तस्वीरों में कभी भी भगवान को जीवन्त नहीं देखा लेकिन आपके और भैया के रूप में साक्षात देवी देवताओं का स्वरूप देखता रहा हूँ, जब भी कहीं ईश्वरीय शक्ति की चर्चा होती है वहा मुझे आपही दोनों का अक्स नजर आता है इसिलए मैं अपने भगवान के चरणों में पड़ा हूँ । भाभी आप अपने भगवान की पूजा आराधना कीजिए और मैं अपने। इधर हम दोनों की बातें तर्क वितर्क चल रहा था उसी बीच पता नहीं कब भैया भी उठकर हमलोगों के समीप ही आ खड़े हुए थे।

जैसे ही मैंने अपनी बात समाप्त की और नजरे ऊपर की भैया भाभी को देखा उन दोनों के आंखों में आंशु थे जिन्हें देख मैं तड़प उठा…. आप दोनों के आखों में आंशु क्यों..?.. मैने आश्चर्य मिश्रित प्रश्न पूछा! ये तो खुशी के आंशु हैं शुभम….भैया ने आंखों से लुढक पड़े उन अनमोल मोती के बूंदों को साफ करते हुए बड़े ही स्नेहिल भाव से मेरे सर पे हाथ फेरते हुये कहा।

आज समीर के कम्पनी पहुंचते ही बड़े साहब का संदेश उसका इंतजार कर रहा था । समीर को आते ही साहब के समक्ष पेस होने का आदेश उसे किसी सहर्मी ने बताया, समीर बीना देर किये बड़े साहब के कार्यालय पहुंचा, माहौल बड़ा ही गरम था बड़े साहब ने अग्नेय नेत्रों से उसे कुछ देर तक घूरते रहने के बाद कड़क स्वर में पूछा….यह डीउ्टी आने का क्या टाईम है, …..समीर सर झुकाये दोनो हाथ आगे की तरफ सावधान मुद्रा में खड़ा निशब्द खड़ा रहा।….हाँ जी मैं आप हीं से पूछ रहा हूँ….अभी तक मैंने सुना नहीं आपने क्या बोला। समीर कुछ बोलने ही वाला था तभी फिर से साहब की कड़क आवाज दिवारों को थर्राती हुई उसके कानो तक पहुंची…… सुना है आजकल कर्मचारियों को हमारे खिलाफ भड़काने का काम भी कर रहे हो, लगता है यहाँ तुम्हारे वक्त पूरे हो चूके हैं।

समीर को बड़े साहब की ये बातें तीर सी चूभी खुद को बोले बीना रोक न सका कारण कभी भी उसने कम्पनी के अहित की बात अपने जेहन में आने न दिया, हमेशा ही कम्पनी हित के निहितार्थ कार्यरत रहा….सर आपके खिलाफ कर्मचारियों को भड़काने की बात मैं सपने में भी नहीं सोच सकता , सर किसी न किसी को जरूर कोई न कोई गलतफहमी हुई है जो आपसे ऐसी बात कर गया।
रही बात देर से आने की तो आजसे मेरे छोटे भाई शुभम का बोर्ड एक्जाम प्रारंभ हुआ है और उसे ही परीक्षा भवन तक छोड़ने के कारण देर हो गया, मैंने आपका फोन ट्राई किया था किन्तु नेटवर्क बीजी होने के कारण आपसे बात न हो सकी।

आज शुभम का परीक्षा परिणाम घोषित हुआ वह प्रथम श्रेणी में उतीर्ण हुआ है, घर में त्यौहार जैसा माहौल है आज समीर और संगीता के खुशी का कोई ठीकाना नहीं है, दोनो शुभम को साथ लेकर मंदिर गये पूजा अर्चना की फिर मिठाई के दुकान से मिठाई ली गई ताकि सभी मुहल्ले वालों को खिलाया जा सके, घर पे एक भव्य दावत का प्रबंध हुआ जिसमें समीर के कम्पनी से कुछ सहकर्मी, मुहल्ले के कुछ गणमान्य व्यक्ति, कुछ अतिथि टाईप लोग बाकी शुभम के यार दोस्त । ………..दावत में उपस्थित सभी सदस्यों का बड़े ही गर्मजोशी के साथ स्वागत सत्कार किया गया।

समय की अपनी गति है किसी के लिए भी किसी भी सम या विषम परिस्थिति में यह कदापि नहीं रुकता यह बदस्तूर चलता रहता है। इधर समीर की कम्पनी में साहब से उसका छत्तीस का आकड़ा बना रहा जिसका सबसे बड़ा कारण रघु था जो गाहे बगाहे बड़े साहब का कान भरता रहता , इधर शुभम सफलता दर सफलता प्राप्त करता हुआ ईंजीनीयरींग की परीक्षा पास कर एक बहुत बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में ज्वाईनिंग कर जाब करने लगा अच्छी खासी सेलरी पर लगा था शुभम ।

शुभम के इस सफलता के निमित्त समीर का रोम रोम कर्जदार हो गया था। समीर राघवशरण जी का ज्येष्ठ पुत्र था शुभम समीर से दस वर्ष छोटा था इस अन्तराल में उनके दो पुत्र और तीन पुत्रियां हुईं किन्तु सब भगवान को प्यारी हो गईं , शुभम घर में सबका लाडला था । समीर के लिए शुभम एक एम्बीशन था वह उसे खुद को बेच कर भी सफलता के आसमान पर बिठाना चाहता था और इस सुकार्य में संपूर्ण रूप से , समर्पित भाव से सहयोग देने वाली उसे संगीता जैसी पत्नी मिली थी। आज शुभम को इस उचाई तक पहुंचाने में समीर का रोम-रोम कर्ज में डुब चूका था किन्तु संगीता ने कभी भी इस कार्य के लिए समीर का पथ अवरुद्ध नहीं किया अपितु प्रोत्साहित करती रही हौसला देती रही की कोई बात नहीं आगे सब ठीक होगा।

शुभम अपने ही सहकर्मी हर्षा से प्यार करने लगा था हर्षा भी शुभम को चाहने लगी बात समीर व संगीता तक पहुंची खुशी-खुशी बड़े हीं धूमधाम से दोनों की शादी करा दी गई।

सफलता कई मायनों में अच्छी होती होती है तो कभी कभी इसे सम्भाल पना मुश्किल हो जाता है । सफलता जब सर पे सवार हो जाय तो वह इंसानी मनोमस्तिष्क को बुरी तरह प्रभावित कर देती है और यहीं से इंसानी प्रवृत्ति में लोभ लोलुपता एवं बुराई का समावेश होता है जो आगे चलकर विनाश का मूल बनता है।
शुभम और हर्षा दोनों ही अच्छी खासी सेलरी कमा रहे थे शादी के पहले और शादी के बाद दो चार महिनें तक शुभम सारा का सारा सेलरी अपनी भाभी को देता रहा किन्तु यह बात हर्षा को खटकने लगी वह गाहे बगाहे शुभम का कान उसके भाभी के खिलाफ भरने लगी, पहले तो शुभम हर्षा को समझाता डाटता डपता किन्तु नारी हठ के आगे देवता तक हथियार डाल देते हैं तो शुभम किस खेत का वैगन है।

आज कई वर्षों के कुटिल प्रयास के उपरांत रघु आखिरकार अपने मकसद में कामयाब हो ही गया।
समीर को कम्पनी की सेवा से मुक्त कर दिया गया। उसके जगह रघु को उसके पद पर आशीन होने का सुनहरा अवसर प्रदान किया गया।

परेशानी जब भी आती है थोक के भाव आती है इस परिस्थिति में कुछ लोग धैर्य रख कर कठिन परिस्थिति से, विपदा के इस घड़ी से निजात पा लेते हैं किन्तु कुछ लोग टूटकर विखर जाते हैं । इधर समीर का नौकरी गया उधर हर्षा के प्रतिदिन के चीक – पीक से आजीज शुभम ने भाई , भाभी से अलग रहने का फैसला कर बैठा, संगीता ने जब कर्जे का हवाला देकर शुभम को रोकना चाहा तभी हर्षा ने आग में घी डालते हुए संगीता से स्पष्ट शब्दों में कह दिया आपने जो कर्जे लिए वह अपने फर्जों का निर्वहन व अपने ऊच्चस्तरीय आवश्यकताओं की पूर्ति के निमित्त लिए, और इतने महीनों से हम दोनों भी तो अपनी सेलरी आपही को दे रहे थे फिर आप दोनों ने कर्जे क्यों नहीं भरे हमें भी तो अपने भावी भविष्य के समब्द्ध सोचना कब तक आप दोनों का भुथरा भरते रहेंगे।

सब कुछ खत्म हो चूका था साथ हीं साथ समीर व संगीता के द्वारे किया गया इतने वर्षों का तपस्या भी विफल हो गया था, कर्जदारों ने जीना हराम कर रखा था समीर पूर्णतया टूट गया था आज वह समझ नहीं पा रहा था संपूर्ण जीवन भलाई करते रहने का आखिर यह कैसा फल है…….?
…….
©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
17/2/2018

Language: Hindi
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