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26 Aug 2021 · 1 min read

यह कैसा अंगार तुम्हारी आंँखों में

गीतिका
आधार छंद – मंगल माया (मापनी मुक्त मात्रिक)
विधान – कुल 22 मात्राएँ, 11,11 पर यति, यति के पूर्व गाल, पश्चात लगा अनिवार्य
समांत – आर, पदांत – तुम्हारी आँखों में,

कैसा यह अंगार, तुम्हारी आंँखों में?
झलक रही है हार, तुम्हारी आंँखों में।

हार मान कर बैठ, गये हो क्यों बोलो?
सपने क्यों लाचार, तुम्हारी आंँखों में?

जीवन है संग्राम, लड़ो जबतक सांसें,
कैसी यह मनुहार, तुम्हारी आंँखों में?

सिर्फ करो तुम कर्म, नहीं फल की चिंता,
उमड़ेगा फिर प्यार, तुम्हारी आंँखों में।

आये खाली हाथ, तुम्हारा क्या था जी?
कैसा यह चीत्कार, तुम्हारी आंँखों में?

जबतक तन में प्राण, परिश्रम करना तुम,
होगा नव संचार, तुम्हारी आंँखों में।

यह जीवन है ‘सूर्य’, बताओ तुम मुझको?
अश्क मिला हर बार, तुम्हारी आंँखों में।

(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
☎️7379598464

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