यही अभिलाषा है मन की …( श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष)
यही अभिलाषा है मन की ,
हे कान्हा ! तेरा सानिध्य पायूं ।
द्वापर युग में जन्म लेकर,
तेरे साक्षात दर्शन हर पल पायुँ।
तू पुनः अवतार ले छोटा सा कान्हा बनकर,
मैं तेरी यशोदा मैया बन जायुं ।
तुझे प्यार कर ,मनुहार कर ,
अपने हाथों से माखन मिश्री खिलायूं।
या तेरे बाल सखाओं में मिलकर,
मटकी फोड़ू ,माखन चुरायुं।
और गायों के संग वन में तेरे संग,
विचरण करूं ,शरारतें करूं ।
या फिर गोपी बनकर तुझे छेडूं,
कभी तुझे प्यार से माखन खिलायूँ ,
तो कभी छछिया भर छाछ पर ,
तुझे नचायूं और खुद भी नाचूं ।
मैं तेरी बाल लीलाओं के हर रूप ,
को निहारूं,तूझपर वारी वारी जायूं।
तेरे सुन्दर सलोने रूप को मैं ,
जी भर कर आंखों में उतार लूं ।
बस! यही तमन्ना है जीवन की ,
किसी तरह तेरा सानिध्य पायुं ,
और तुझपर निहाल हो जायूं।