यहां हर चीज शाही है , मगर ना पेट भर पाए
सजाएं ख्वाब थे उन ने , वो मुझको भी बहुत भाए .
लिखी बस वेदना मैंने , जो गम मैंने यहां पाए .
मैं तो आजाद पंछी था , जो बस आंगन मैं था खेला .
यहां है आसमा खाली , जो दुख मुझ पर बहुत ढए .
वहां थे डांटते मुझको , मगर थे प्यार छलकाते .
अब तो हर चीज प्यारी है , मगर मुझको ना यह भाए .
वहां बस दाल रोटी थी , जिसे मैं खूब खाता था .
यहां हर चीज शाही है , मगर ना पेट भर पाए